अन्तरजाल पर
साहित्य-प्रेमियों की विश्राम-स्थली

काव्य साहित्य

कविता गीत-नवगीत गीतिका दोहे कविता - मुक्तक कविता - क्षणिका कवित-माहिया लोक गीत कविता - हाइकु कविता-तांका कविता-चोका कविता-सेदोका महाकाव्य चम्पू-काव्य खण्डकाव्य

शायरी

ग़ज़ल नज़्म रुबाई क़ता सजल

कथा-साहित्य

कहानी लघुकथा सांस्कृतिक कथा लोक कथा उपन्यास

हास्य/व्यंग्य

हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी हास्य व्यंग्य कविता

अनूदित साहित्य

अनूदित कविता अनूदित कहानी अनूदित लघुकथा अनूदित लोक कथा अनूदित आलेख

आलेख

साहित्यिक सांस्कृतिक आलेख सामाजिक चिन्तन शोध निबन्ध ललित निबन्ध हाइबुन काम की बात ऐतिहासिक सिनेमा और साहित्य सिनेमा चर्चा ललित कला स्वास्थ्य

सम्पादकीय

सम्पादकीय सूची

संस्मरण

आप-बीती स्मृति लेख व्यक्ति चित्र आत्मकथा यात्रा वृत्तांत डायरी बच्चों के मुख से यात्रा संस्मरण रिपोर्ताज

बाल साहित्य

बाल साहित्य कविता बाल साहित्य कहानी बाल साहित्य लघुकथा बाल साहित्य नाटक बाल साहित्य आलेख किशोर साहित्य कविता किशोर साहित्य कहानी किशोर साहित्य लघुकथा किशोर हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी किशोर हास्य व्यंग्य कविता किशोर साहित्य नाटक किशोर साहित्य आलेख

नाट्य-साहित्य

नाटक एकांकी काव्य नाटक प्रहसन

अन्य

रेखाचित्र पत्र कार्यक्रम रिपोर्ट सम्पादकीय प्रतिक्रिया पर्यटन

साक्षात्कार

बात-चीत

समीक्षा

पुस्तक समीक्षा पुस्तक चर्चा रचना समीक्षा
कॉपीराइट © साहित्य कुंज. सर्वाधिकार सुरक्षित

बदल गये हम

 

बदल गये हम तो इतने
न पहचान सके ख़ुद को भी
 
लड़ते थे बचपन में कर लेते थे कुट्टी
फिर भूल सभी गिले शिकवे
साथ खेलते थे हम
चाव बहुत था सब कुछ जानें
घटता जो पास हमारे
और सुनाते अग्रज जो कुछ
उसको पहचानें
 
विद्यालय से कॉलेज तक
मस्ती में रहते, हँसते गाते
संस्कारों, मूल्यों, आदर्शों को रटते
परिजनों के सम्मान की ख़ातिर डटते
अपनी दुनिया नई-नई रचते
 
उन्नत होगा यह समाज
बदलेगा संसार
सबको कपड़ा, सबको अन्न मिलेगा
काम मिलेगा, सम्मान मिलेगा
श्रम का पूरा दाम मिलेगा
 
भटके काफ़ी तब काम मिला
प्रतिद्वंद्विता, स्पर्धा और ईर्ष्या
दफ़्तर वाली राजनीति
व्यवहारिक ज्ञान बढ़ा
जानी देश विदेश की घटनाएँ
 
कूटनीति और अर्थनीति
कैसा गोरखधंधा है
जो कूट कुटिल वह शक्तिमान
जो भोला भाला वह परेशान
मन में ठानी यह सब ख़त्म करेंगे
विषमता और अन्याय मिटेंगे इक दिन
जीवन सबका सुंदर होगा
 
लगे रहे हम इसी यत्न में
फिर सब तेज़ी से बदला
जो सोचा था उसका उल्टा
लेकिन आस नहीं छोड़ी
आपस में इक दूजे को समझाया
हर हाल में होगा सब चंगा
कटु यथार्थ है सतत संघर्ष
 
धीरे-धीरे स्वप्न हुए धूमिल
ख़ुद की चिंता बड़ी लगी
निज स्वार्थ औ' नित नये समझौते 
अच्‍छा और बुरा गड्डमड्ड सब
 
था एक मदारी एक जमूरा
देखा था तब हमने
अब फैले चारों ओर जमूरे
जीवन भर जिनने विरोध की बातें की
सुर उनके अब बदले
ग़ज़ब तमाशा प्रहसन नये नये
हैं आज मुखौटे कई कई
 
भूले वह चेहरा जो दमका करता था
नहीं दिखाई देता वह
अब उससे डर लगता है
कितने बदल गये हम
न पहचान सके ख़ुद को भी

अन्य संबंधित लेख/रचनाएं

'जो काल्पनिक कहानी नहीं है' की कथा
|

किंतु यह किसी काल्पनिक कहानी की कथा नहीं…

14 नवंबर बाल दिवस 
|

14 नवंबर आज के दिन। बाल दिवस की स्नेहिल…

16 का अंक
|

16 संस्कार बन्द हो कर रह गये वेद-पुराणों…

16 शृंगार
|

हम मित्रों ने मुफ़्त का ब्यूटी-पार्लर खोलने…

टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

कविता

साहित्यिक आलेख

सामाजिक आलेख

पुस्तक चर्चा

पुस्तक समीक्षा

ऐतिहासिक

हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी

आप-बीती

यात्रा-संस्मरण

स्मृति लेख

कहानी

काम की बात

विडियो

उपलब्ध नहीं

ऑडियो

उपलब्ध नहीं

लेखक की पुस्तकें

  1. भारत का स्वाधीनता संग्राम और क्रांतिकारी
  2. धरती-21