समस्या का हल
हास्य-व्यंग्य | हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी हेमन्त कुमार शर्मा15 Oct 2023 (अंक: 239, द्वितीय, 2023 में प्रकाशित)
सब्ज़ी मंडी में टमाटर का भाव पूछ कर प्रकाश को दौरे की स्थिति होने लगी।
साथ में आए मित्र ने उसे गिरते-गिरते सँभाला। सब्ज़ी वाले ने उनके ऊपर ध्यान ना दिया अन्य ग्राहकों को निपटाने में व्यस्त हो गया।
मित्र ने कहा, “तुझे कितनी बार कहा है इस तरह के जोखिम मोल ना लिया कर। देखा अभी गिर जाता। चोट लगती। टमाटर हम ग़रीबों का भोजन नहीं है। यह अमीर कुनबे के उपयोग की वस्तु है। हमें तो सस्ते देसी सेब जैसे फल ही खाने चाहिए।”
“और सेब भी सबसे घटिया सौ रुपए प्रति किलो थे,” यह कहते ही वह झेंप गया।
पड़ोस के रमेश जी को दूसरी बार दिल का दौरा पड़ा। पहली बार जब बेटा नई बहू को लेकर घर से अलग हुआ और दूसरी बार टमाटर के कारण। हफ़्तों अस्पताल में दिन कटे।
हुआ यूँ रमेश जी ने क़स्बे के सम्माननीय सब्ज़ी वाले से एक किलो टमाटर लिए। ढेरी दूर रखे होने के कारण उनका हाथ ठीक से पहुँच नहीं रहा था। सो उस दुकानदार ने कुछ मदद की। और वह मदद किस प्रकार की थी।
“अरे भाई देख कर डालना एक-एक पीस की क़ीमत है,” रमेश जी बोले।
उनकी आँखें बचाकर कुछ दबे-कुचले टमाटर भी डाल दिए और दबे-कुचले की क़ीमत आदमी की नहीं होती फिर उसकी क्या होगी? रमेश जी अन्य सामान लेने में व्यस्त हो गए। घर जाकर देखा चार टमाटर सड़े हुए थे। कुल बारह ही पीस तो चढ़े थे। दुकानदार को वापस करने गए। दूर दुकान थी। पचास का पेट्रोल ही लग गया।
“साहब ले जाते हुए ध्यान रखते। रस्ते में दब गए होंगे,” दुकानदार ने उपेक्षित भाव से कहा।
“अरे, ऐसे कैसे? आधे घंटे में बदबू थोड़ी आ जाती है,” रमेश जी ने लगभग चिल्ला ही पड़े।
काफ़ी देर तक तू-तू मैं-मैं होती रही। दो-तीन घंटे पहले ही बरसात हुई थी। उमस और गर्मी के कारण रमेश जी बेहोश हो गए। दुकानदार को काटो तो ख़ून ना था। आनन-फ़ानन में पास जमा लोगों ने हॉस्पिटल पहुँचाया और दुकानदार को उलाहना देने लगे।
दुकानदार के अच्छे-ख़ासे पैसे लग गए जान छुड़ाने में। रमेश जी को दिल का दूसरा दौरा पड़ा था . . .
टमाटर का रेट मरीज़ को बेहोश कर ऑपरेशन करने में सहायक हो रहा था। चोर परचून की दुकान छोड़ सब्ज़ी की दुकान पर फेरे लगाने लगे। वर को दहेज़ में टमाटर की टोकरी बना कर अलग से दी जाती। टमाटर का सलाद ढाबे में सबसे महँगा था।
इस समस्या पर गोल मेज़ मीटिंग भी सरकारी महकमे ने बुलाई। पहले ‘लुटिया डुबो’ के प्रबंधक बोले, “बरसात के पानी ने सड़क तहस-नहस कर दी है। आवाजाही बंद होने के कारण टमाटर का रेट बढ़ गया।”
फ़सल उजाड़ महकमे के अफ़सरान खर्राटे लेते पाए गए। जगाने पर हरबड़ाते हुए बोले, “कौन है, कौन है।” होश आने पर पूछा, “किस बात पर मीटिंग है?”
उनकी जगह अन्य अफ़सर को विचार रखने का मौक़ा दिया गया। उसने सरकारी कर्मचारियों को नब्बे प्रतिशत सब्सिडी पर टमाटर की वकालत की।
मीटिंग में चर्चा के लिए मंत्री जी को भी बुलाया गया था। हर बार की भाँति तीन घंटे लेट पहुँचे निर्णय के समय। शीघ्र राहत के लिए हल निकाला। सौ प्रतिशत सब्सिडी मंत्री जी ने अपने लिए रखी और सरकारी कर्मचारी नब्बे और दस प्रतिशत पर अन्य जनता को रखा गया। ऊपर फ़ाइल भेजी गई। जो तुरन्त साइन हो गई।
अन्य संबंधित लेख/रचनाएं
60 साल का नौजवान
हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी | समीक्षा तैलंगरामावतर और मैं लगभग एक ही उम्र के थे। मैंने…
(ब)जट : यमला पगला दीवाना
हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी | अमित शर्माप्रतिवर्ष संसद में आम बजट पेश किया जाता…
टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
सजल
- अगर प्रश्नों के उत्तर मिल जाते
- अब अँधेरा भी शरमा जाता है
- अब किनारों की ज़रूरत नहीं
- अब किस को जा कर ख़बर लिखाएँ
- अब क्या लिखूंँ
- इधर गाँव जा रहा है
- इस प्रेम मार्ग की बात न पूछ
- इस शहर की कोई बात कहो
- उठोगे अगर
- उस नाम को सब माना
- उसने हर बात निशाने पे कही
- एक इम्तिहान में है
- एक फ़ैसला रुका हुआ है
- और फिर से शाम हो गई है
- कहीं कभी तो कोई रास्ता निकलेगा
- कोई एक बेचैनी सी
- चर्चा आम थी
- जिसके ग़म में तुम बिखरे हो
- डूब जाएगा सारा जहाँ
- नाम याद आता है पीड़ा के क्षण में
- पार हाला है
- फिर किसी रोज़ मुलाक़ात होगी
- बाक़ी कहानी रहनी चाहिए
- मेरी बात का भरोसा करो
- मेरे आईने में तस्वीर हो तुम
- मैं भी तमगे लगा के फिरता हूँ
- वह पथ अगम्य
- सब अपनी कही पत्थरों से
- ज़िन्दगी के गीतों की नुमाइश
कहानी
कविता
- अगर जीवन फूल होता
- अपने अन्दर
- अब इस पेड़ की बारी है
- आँसू भी खारे हैं
- एक पटाखा फूट गया
- और भी थोड़ा रहेगा
- कल्पना नहीं करता
- कहते कहते चुप हो गया
- काग़ज़ की कश्ती
- किसान की गत
- कोई ढूँढ़ने जाए कहाँ
- क्या हो सकता है क्या होना चाहिए
- क्षण को नापने के लिए
- खिल गया काँटों के बीच
- गाता हूँ पीड़ा को
- घन का आँचल
- जानता हूँ कितना आज्ञाकारी है
- जीवन की पहेली
- जीवन में
- तुम चाँद हो
- तू कुछ तो बोल
- दरिया है समन्दर नहीं
- दिन उजाला
- देखते। हारे कौन?
- नगर के अरण्य में
- नगर से दूर एकांत में
- नदी के पार जाना है
- पर स्वयं ही समझ न पाया
- पाणि से छुआ
- पानी में मिल जाएँगे
- पीड़ा क्या कूकती भी है?
- प्रभात हुई
- प्रेम की कसौटी पर
- बहुत कम बदलते हैं
- बहुत हुई अब याद
- बूँद
- मन इन्द्रधनुष
- मन की विजय
- मुझे विचार करना पड़ता है
- मेरा किरदार मुझे पता नहीं
- मैं भी बच्चे की तरह रोना चाहता हूँ
- मैं रास्ता हो गया हूँ
- मैंने भी एक किताब लिखी है
- राम का अस्तित्व
- रेत में दुख की
- वर्षा
- वह बड़ा धुरंधर है
- वो साइकिल
- शहर चला थक कर कोई
- शाह हो या हो फ़क़ीर
- सब भ्रम है
- सब ग़म घिर आए
- साधारण रंग नहीं है यह
- सितम कितने बयाँ
- सुहानी बातें
- हद वालों को बेहद वाला चाहिए
- ख़ुदा इतना तो कर
नज़्म
ग़ज़ल
लघुकथा
हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी
सांस्कृतिक कथा
चिन्तन
ललित निबन्ध
विडियो
उपलब्ध नहीं
ऑडियो
उपलब्ध नहीं