सब तेरी ज़द में है
कथा साहित्य | लघुकथा हेमन्त कुमार शर्मा1 Dec 2023 (अंक: 242, प्रथम, 2023 में प्रकाशित)
नदी लबालब थी। मकान, दुकान, खेत खलिहान सब डूब गए। नदी ने कहा, “सब मेरी ज़द में है।”
ऊपर से सहायता के लिए बहुत पैसा आएगा। सरकारी अफ़सर की आँखों के आगे नई गाड़ी, नया बँगला विदेश यात्रा सब कुछ तैरने लगा। उसने कहा, “सब मेरी ज़द में है।”
जो सब कुछ लुटा कर बैठे थे। दो कोर आँखों की भीग गई। आँसू ने कहा, “सब मेरी ज़द में है।”
कृत्रिम महँगाई बढ़ गई। एक वर्ग अन्न को भी तरसा। यह मुसीबत देख के महँगाई ने कहा, “सब मेरी ज़द में है।”
सूनी आँखें काला बाज़ारी से बेहाल, असहाय थीं। आकाश की तरफ़ देखकर परमात्मा को याद किया और कहा, “सब तेरी ज़द में है।”
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