पानी में मिल जाएँगे
काव्य साहित्य | कविता हेमन्त कुमार शर्मा1 Jan 2024 (अंक: 244, प्रथम, 2024 में प्रकाशित)
पानी में मिल जाएँगे,
अन्तिम हो जाएँगे।
बादल में सिमट कर,
बूँदों से बिखर जाएँगे।
कभी शाम से ढले थे,
सहर से निखर आएँगे।
काग़ज़ में उकेरे शब्द,
जब उनके ज़िक्र आएँगे।
शायद मन उलझन में था,
उन्हें भाएँगे कि नहीं भाएँगे।
सच तो आँखें बोलती हैं,
शब्द कहने में अकड़ जाएँगे।
तुम्हारी बात कोई सच्ची हो,
कठिन तो है मगर आएँगे।
सभी रास्ते देख आया था,
बस अब उसकी डगर जाएँगे।
गाँव की पगडंडी ख़त्म,
अब दुख के नगर आएँगे।
वन की निरवता भी बोलती,
शहर के शोर ख़ामोशी ले आएँगे।
प्यास बूँद से ही बुझेगी,
और वो उठा सागर लाएँगे।
तेरी स्नेह की कही घात लिए,
माने, दुनिया में और उलझ जाएँगे।
अन्य संबंधित लेख/रचनाएं
टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
कविता
- अगर जीवन फूल होता
- कहते कहते चुप हो गया
- काग़ज़ की कश्ती
- किसान की गत
- खिल गया काँटों के बीच
- घन का आँचल
- जीवन में
- दिन उजाला
- नगर से दूर एकांत में
- नदी के पार जाना है
- पाणि से छुआ
- पानी में मिल जाएँगे
- प्रभात हुई
- प्रेम की कसौटी पर
- बहुत हुई अब याद
- मन इन्द्रधनुष
- मन की विजय
- मैं भी बच्चे की तरह रोना चाहता हूँ
- राम का अस्तित्व
- रेत में दुख की
- वर्षा
- वो साइकिल
- सितम कितने बयाँ
- सुहानी बातें
- ख़ुदा इतना तो कर
कहानी
लघुकथा
हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी
नज़्म
सांस्कृतिक कथा
चिन्तन
ललित निबन्ध
विडियो
उपलब्ध नहीं
ऑडियो
उपलब्ध नहीं