राज़ खुलते गए
शायरी | ग़ज़ल हेमन्त कुमार शर्मा1 Oct 2024 (अंक: 262, प्रथम, 2024 में प्रकाशित)
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राज़ खुलते गए,
बाण चलते गए।
रात ठहरी रही,
दीये जलते रहे।
बात गहरी कही,
हाथ मलते गए।
साथ रखते रहे,
फ़िक्रे कसते रहे।
दाल गलती नहीं,
चूल्हे बलते रहे।
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