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सारे ग़म तेरी इनायत है

 

सारे ग़म तेरी इनायत है, 
अपनी हाँ तेरी शायद है। 
 
काग़ज़ क्या हाले दिल बयाँ करते, 
मन की स्याही क़लम से डरते। 
ऑंख की बूँद भी उसकी क़ायल है। 
 
सावन की रुत और दूरी के क़िस्से, 
अब नहीं किसी किताब के हिस्से। 
सत्ता की कहानी भरी ज़ाइद है। 
  
बख़्श उस फ़क़ीर को अपनी दीद, 
कितना वक़्त बिता मनाए ईद। 
तेरी बेरुख़ी से जन्मों का घायल है। 
 
जो मिला उसकी तलब कहाॅं अधीरे को, 
जिसकी आरज़ू कहाॅं पाएगा उस हीरे को। 
ज़िन्दगी यूँ ही कैसे देगी जो बायद है। 

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