दिन उजाला
काव्य साहित्य | कविता हेमन्त कुमार शर्मा15 Sep 2023 (अंक: 237, द्वितीय, 2023 में प्रकाशित)
दिन उजाला भी अँधेरे सा,
रात भी चाँद ना निकला।
भरी ऑंखें ख़ूब रोई सावन था,
दुख दिया उसने कोई मनभावन था।
बाहर से शांत भीतर आकुला।
संगीत दुख भरा और कुछ अल्फ़ाज़,
कोई कहे अजूबा मुर्दाघर है ताज।
कोई पूरा सुखी तो उसे तुरंत दिखला।
वाह अंतिम इस देह की आस,
घट घट में व्याप्य रहा बोले हर साँस।
जीवन कैसे जीएँ ये भी सिखला।
आशा बँधा कर जीवन निकाला,
रद्दी के भाव बिका मन आला।
मित्र! जीवन पहेली का कोई हल बतला।
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