कल्पना नहीं करता
काव्य साहित्य | कविता हेमन्त कुमार शर्मा1 Jan 2025 (अंक: 268, प्रथम, 2025 में प्रकाशित)
मैं कल्पना नहीं करता, 
बस सोचता हूँ कि उस
पार क्या होगा, 
क्या था और क्या होना चाहिए। 
बस विस्तार करता हूँ अपनी चेतना, 
व्याकुल हृदय तक। 
आत्मसात हो जाता हूँ, 
उस अधीर हृदय की पीड़ा से। 
यह पीड़ा सर्वव्यापी है, 
धन से बड़े में, 
धन से लघु में। 
यह पीड़ा उपेक्षा की है, 
यह पीड़ा टूटी अपेक्षा की है। 
विश्वास की लौ बुझने की है, 
अविश्वास की लौ बलने की है। 
सपनों के बुनने पर
व्यंग्य पाने की है। 
मन के केन्द्र में
सब कुछ कह सकता हूँ, 
बस कल्पना नहीं करता, 
भय करता हूँ कल्पना करने से। 
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