घन का आँचल
काव्य साहित्य | कविता हेमन्त कुमार शर्मा15 Sep 2023 (अंक: 237, द्वितीय, 2023 में प्रकाशित)
घन का आँचल ओढ़े,
ऐ वासंती पवन तुम कहाँ चली।
अधखिले फूलों पर चेतनता देती,
कुसुम सुगंध से उत्तमता लेती।
ऐ अदृश्य देवी तुम कहाँ चली।
वृक्षों के शिर डोलाती झुकाती,
मार्गों में शुचिता उभारती।
ऐ मेहतरानी सी तुम कहाँ चली।
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