ज़मीन का क ख ग
कथा साहित्य | लघुकथा हेमन्त कुमार शर्मा15 Feb 2024 (अंक: 247, द्वितीय, 2024 में प्रकाशित)
“भूमि पर क़ब्ज़ा करना सरल नहीं। क्यों बाबा जी?” चेले की उद्घोषणा और प्रश्नावली।
“धूनी रमा ली है बच्चा। अब तो इनका बाप भी ख़ाली नहीं करवा सकता ज़मीन,” बाबा का प्रवचन।
ज़मीन मालिक का आगमन, “संतों की जय, फ़क़ीरों की जय!! इंच-विंच छोड़ ही देते बाबा जी।”
“मालिक तो एक परमात्मा है। गॉड इस ग्रेट। तू काहे की चिंता करता है बालक। तेरी ज़मीन परमार्थ में ख़र्च हो रही है।”
“पर बाबा जी, इसी ज़मीन के सहारे अपनी तीन लड़कियों को पार लगाना है।”
“मूर्ख पार तो बस परमात्मा से है आत्मा का। यहाँ सेवा कर्म में भेज। बाबा विवाह की व्यवस्था करेंगे।”
कुछ क्षण की चुप्पी के बाद चेले ने कहा, “ज़मीन मालिक वापस चला गया बाबा जी।”
बाबा कथा, “मरने दो। ज़मीन नहीं छोड़नी। चाहे कुछ हो जाए। डेरा ज़्यादा बढ़ा दो—किसी की चिंता ना करो। परमात्मा हमारे साथ है और उनके कर्मचारी सियासी पार्टी भी।”
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