कब से फ़ुर्क़त का समां तारी है
शायरी | नज़्म हेमन्त कुमार शर्मा1 Sep 2023 (अंक: 236, प्रथम, 2023 में प्रकाशित)
कब से फ़ुर्क़त का समां तारी है,
बुझ गई जो उम्मीद शमा बारी है।
मयकदा वीराने में मिला,
बस्ती में बस इंतज़ारी है।
इस बस्ती की हर गली बोलती है,
हर दीवार हारी है।
कितना ख़र्चा है घर चलाने में,
दिन बेचैन रात बेक़रारी है।
दस बीस साल सब्र करो,
यह काम सरकारी है।
मुख़ालिफ़ की सब कारिस्तानी,
सियासी बयान जारी है।
जनता, भलाई, किसान, खाद की बात,
लीडर की नज़र में ज़मीन सारी है।
क़र्ज़ चुकता ना होगा,
ज़िन्दगी तक उधारी है।
वह आज फिर ख़ाली पेट सो गया,
मज़दूरी कितनों ने मारी है।
बीस बढ़े बात नहीं, पाँच कम किये,
यह ख़बर जनहित में जारी है।
अन्य संबंधित लेख/रचनाएं
टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
सजल
कविता
- अगर जीवन फूल होता
- अब इस पेड़ की बारी है
- एक पटाखा फूट गया
- और भी थोड़ा रहेगा
- कहते कहते चुप हो गया
- काग़ज़ की कश्ती
- किसान की गत
- क्या हो सकता है क्या होना चाहिए
- क्षण को नापने के लिए
- खिल गया काँटों के बीच
- गाता हूँ पीड़ा को
- घन का आँचल
- जानता हूँ कितना आज्ञाकारी है
- जीवन की पहेली
- जीवन में
- तुम चाँद हो
- तू कुछ तो बोल
- दरिया है समन्दर नहीं
- दिन उजाला
- देखते। हारे कौन?
- नगर के अरण्य में
- नगर से दूर एकांत में
- नदी के पार जाना है
- पर स्वयं ही समझ न पाया
- पाणि से छुआ
- पानी में मिल जाएँगे
- पीड़ा क्या कूकती भी है?
- प्रभात हुई
- प्रेम की कसौटी पर
- बहुत कम बदलते हैं
- बहुत हुई अब याद
- बूँद
- मन इन्द्रधनुष
- मन की विजय
- मुझे विचार करना पड़ता है
- मेरा किरदार मुझे पता नहीं
- मैं भी बच्चे की तरह रोना चाहता हूँ
- राम का अस्तित्व
- रेत में दुख की
- वर्षा
- वो साइकिल
- शहर चला थक कर कोई
- सब भ्रम है
- साधारण रंग नहीं है यह
- सितम कितने बयाँ
- सुहानी बातें
- हद वालों को बेहद वाला चाहिए
- ख़ुदा इतना तो कर
ग़ज़ल
लघुकथा
कहानी
हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी
नज़्म
सांस्कृतिक कथा
चिन्तन
ललित निबन्ध
विडियो
उपलब्ध नहीं
ऑडियो
उपलब्ध नहीं