जिसने तराजू की बात की है
शायरी | नज़्म हेमन्त कुमार शर्मा15 Dec 2024 (अंक: 267, द्वितीय, 2024 में प्रकाशित)
जिसने तराज़ू की बात की है,
उसने बियाबान में रात की है।
ख़िलाफ़ हो गए हैं सब लोग,
सच की जो तूने बात की है।
इस अँधेरे की भी क़ीमत होगी,
कि रोशनी ने फिर रात की है।
फ़ासले ख़ुद-ब-ख़ुद बढ़ने लगे,
मुफ़लिसी से जब मुलाक़ात की है।
थक के बैठे हो क्यों दूर मयकदा,
तंज़ की लोगों ने अभी शुरूआत की है।
सब यहीं जब छोड़ जाना है तुझे,
इतनी चीज़ें क्यों बता साथ की हैं।
सावन भी हैरानी में है मुब्तला,
कल आँखों ने ऐसी बरसात की है।
भीड़ में अकेला देखता रहा ख़ुद को,
पर आज अपने से अपनी बात की है।
जब अकेले ही जाना था वहाँ,
फिर जाने क्यों यहाँ बारात की है।
मुब्तला= कष्ट या विपत्ति में पड़ा हुआ, दुख, संकट आदि से ग्रस्त, व्यस्त
मुफ़लिसी= निर्धनता
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