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कर के तसव्वुर

 

करके तसव्वुर, 
हालात बदलते नहीं। 
 
जान पहचान का बड़प्पन नाहक़, 
सो चुके अरमान मचलते नहीं। 
 
उसकी आँखों का था अगर असर, 
मयकश यों सँभलते नहीं। 
 
समझा शायद चाँद तारा कोई, 
सहर होने पर ढलते नहीं। 
 
चंद्रयान के चर्चे जहाँ भर में, 
दरके मकां की बात सब करते नहीं। 
 
चुनाव से पहले ख़ुदा लगते,
अब ख़ुदा हो पहचानते नहीं।
 
जो वोट के इलावा कुछ क़ीमत होती, 
टूटे मकान हाथ मलते नहीं। 
 
पूछा एक साइंसदान ने भूखे से, 
काहे को चाँद पर चलते नहीं। 
 
फूल खिलते मुरझाते, 
सदा सब फूल खिलते नहीं। 
 
जो जलते हैं दिये उनसे दरख़ास्त,
बुझ गए दिये से जलते नहीं।
 
अब्र आ के यहीं बरसे शायद,
कहते ग़ुर्बत के मारे किसी को खलते नहीं।
 
याद रहता क्या ग़म का फ़साना, 
क़िस्से सब नॉवल में जचते नहीं। 
 
मज़दूरी देता नहीं पैसों का महल किया खड़ा, 
सुनते थे ऐसे लोग फलते नहीं। 

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