अब क्या लिखूंँ
शायरी | सजल हेमन्त कुमार शर्मा1 Aug 2024 (अंक: 258, प्रथम, 2024 में प्रकाशित)
अब क्या लिखूंँ क्या रोक दूँ,
अपनी सोच पर खँजर घोंप दूँ।
उनको पढ़ना है अपने मुताबिक़,
कुछ शब्द प्रशंसा के जोड़ दूँ।
पानी पानी हो गया घर मेरा,
वो कहते हैं वोट फिर उन्हें सौंप दूँ
पेड़ सड़क के सड़क खा गई,
कहो तो कुछ पौधे रोप दूँ।
एक चालाकी सी रहती है,
मुँह फेर लूँ चाहे होम दूँ।
कुछ न होगा आंदोलन से,
मेज़ के नीचे से जब तक ना नोट दूँ।
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