कोई ढूँढ़ने जाए कहाँ
काव्य साहित्य | कविता हेमन्त कुमार शर्मा15 Dec 2024 (अंक: 267, द्वितीय, 2024 में प्रकाशित)
तेरा ध्यान कैसे हो प्रभु
तू आकार में आता नहीं।
कोई ढूँढ़ने जाए कहाँ
तू कहीं आता जाता नहीं।
फूल में मुस्कराए तू ही,
ख़ुश्बू में रह जाता नहीं।
आकाश सम है शून्यता,
शून्य उससे कण पाता नहीं।
नाभि में खोजूँ तू नाभि में,
पूरा पूरा तू कहीं आधा नहीं।
लिपटी वासना छिन्न-भिन्न करें,
फिर बैराग में राग आता नहीं।
विस्मरण ईश का, है मरण,
एकाग्र हो क्यों उसे ध्याता नहीं।
यज्ञ में प्रभु की प्रीति है बहुत,
छोड़ने पर वह नज़र आता नहीं।
अन्य संबंधित लेख/रचनाएं
टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
कविता
- अगर जीवन फूल होता
- अब इस पेड़ की बारी है
- एक पटाखा फूट गया
- और भी थोड़ा रहेगा
- कल्पना नहीं करता
- कहते कहते चुप हो गया
- काग़ज़ की कश्ती
- किसान की गत
- कोई ढूँढ़ने जाए कहाँ
- क्या हो सकता है क्या होना चाहिए
- क्षण को नापने के लिए
- खिल गया काँटों के बीच
- गाता हूँ पीड़ा को
- घन का आँचल
- जानता हूँ कितना आज्ञाकारी है
- जीवन की पहेली
- जीवन में
- तुम चाँद हो
- तू कुछ तो बोल
- दरिया है समन्दर नहीं
- दिन उजाला
- देखते। हारे कौन?
- नगर के अरण्य में
- नगर से दूर एकांत में
- नदी के पार जाना है
- पर स्वयं ही समझ न पाया
- पाणि से छुआ
- पानी में मिल जाएँगे
- पीड़ा क्या कूकती भी है?
- प्रभात हुई
- प्रेम की कसौटी पर
- बहुत कम बदलते हैं
- बहुत हुई अब याद
- बूँद
- मन इन्द्रधनुष
- मन की विजय
- मुझे विचार करना पड़ता है
- मेरा किरदार मुझे पता नहीं
- मैं भी बच्चे की तरह रोना चाहता हूँ
- राम का अस्तित्व
- रेत में दुख की
- वर्षा
- वो साइकिल
- शहर चला थक कर कोई
- सब भ्रम है
- सब ग़म घिर आए
- साधारण रंग नहीं है यह
- सितम कितने बयाँ
- सुहानी बातें
- हद वालों को बेहद वाला चाहिए
- ख़ुदा इतना तो कर
सजल
- अब क्या लिखूंँ
- इधर गाँव जा रहा है
- उसने हर बात निशाने पे कही
- एक फ़ैसला रुका हुआ है
- कहीं कभी तो कोई रास्ता निकलेगा
- कोई एक बेचैनी सी
- चर्चा आम थी
- जिसके ग़म में तुम बिखरे हो
- डूब जाएगा सारा जहाँ
- पार हाला है
- बाक़ी कहानी रहनी चाहिए
- मेरी बात का भरोसा करो
- मैं भी तमगे लगा के फिरता हूँ
- वह पथ अगम्य
- सब अपनी कही पत्थरों से
- ज़िन्दगी के गीतों की नुमाइश
नज़्म
कहानी
ग़ज़ल
लघुकथा
हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी
सांस्कृतिक कथा
चिन्तन
ललित निबन्ध
विडियो
उपलब्ध नहीं
ऑडियो
उपलब्ध नहीं