सब चलता है
कथा साहित्य | लघुकथा हेमन्त कुमार शर्मा1 Oct 2023 (अंक: 238, प्रथम, 2023 में प्रकाशित)
“अख़बार देखा? . . .” दरवाज़े से भीतर प्रवेश करते पादा जी ने कहा।
“आ गए। तुम्हारा ही इंतज़ार था,” मियाँ ने प्रतिक्रिया दी।
मूढ़े पर बैठते हुए, अख़बार को लहराते हुए जो वह अपने साथ ही लाए थे, “देख क्या अविश्वसनीय समाचार है। व्यक्ति मरकर जीवित हो गया।”
“मैंने भी पढ़ लिया है। अख़बार की सारी ख़बरें चाट मारी हैं। क्या तू ही अकेला जो इन सबसे वाक़िफ़ है, हम नहीं?”
पादा जी तैश में आ गए, “तू ही कहता था, चमत्कार दिखा। देख, अब तो अख़बार भी चमत्कार को नमस्कार करने लगे हैं।”
“रैन दे भाई, रैन दे। ठीक से ख़बर नहीं पढ़ी। बेचारा ज़िन्दा ही पोस्टमार्टम की भेंट चढ़ने लगा था। हालत ख़राब थी। डॉक्टर ने अपने इलाज की लापरवाही छुपाने की चेष्टा की होगी।”
“अरे बस। कोई मार सकता है जिसकी साँसें बच्ची हों।”
“साँस बची का तो पता नहीं। पर डेथ सर्टिफ़िकेट ज़रूर प्रदान कर देते डॉक्टर महाशय। चाहे अभी जीवित ही हो रोगी,” मियाँ का ग़ुस्सा प्रकट था।
“क्या कहते हो मियाँ। हमारे डॉक्टर विश्वप्रसिद्ध हैं। इनके जैसे कोई नहीं हैं।”
“अम्मा की दवा लाया था। एक तो उन्हें बिना टीके के तसल्ली नहीं होती। नामी-गिरामी डॉक्टर ने अपनी फ़ीस ज़्यादा लेने के चक्कर में टीका लगा दिया। शुगर थी। उसे बताया भी था। दर्द ठीक होता या ना होता पर पुड़पड़ी सूज गई। दवा करते-करते थक गया। दो महीने में अब आराम आया है। दूसरे डॉक्टर से दवा ली थी। उसकी फ़ीस की एवज़ में अम्मा के बुंदे बेचने पड़े। जो उसकी आख़िरी क़ीमती सोने की वस्तु थी,” एक साँस में सारा वृत्तांत कह डाला मियाँ ने।
“बात तो तेरी ठीक है। वह फ़िल्मों में या टीवी के नाटकों में डॉक्टर ऑपरेशन करके निकलता है ना, क्या कहता है, ‘जो हो सकता था किया अब ऊपर वाले के हाथ में है’, मैं सोचता रहता था—फिर तुम्हारे पास क्या झख मारने आए थे। वहीं ना जाते। फ़ुज़ूल में पैसे ख़र्चे।”
“वाह भाई, ख़ूब। कहाँ से उठा लाए बात को। अभी तुम चमत्कार-वमत्कार की बात कर रहे थे?”
“तुम सब जानते हो मियाँ। कोई चमत्कार नहीं है। डॉक्टर की लापरवाही का नतीजा है। बस तुमसे मिलने का मन चाहा और रूक्किया भाभी के हाथ की बनी चाय पीने का।”
चाय भी आ गई थी। पादा जी को सर झुकाए बैठे देख रूक्किया भाभी मुस्कुरा पड़ी। अन्दर उनके कान में भी उन दोनों का वार्तालाप पड़ गया था।
चाय की पहले चुस्की लेने के बाद उन्होंने फ़रमाया, “शरीर अगर हलचल न करता फिर? जीवित, जिसे शव कह रहे थे, का पोस्टमार्टम हो जाता। शायद पहला व्यक्ति होता जिसका जीवित ही . . .”
“पादा जी, ना छेड़ो ज़ख्मों को। क्या पता अंग ही किसी और को ना डालने हों। पोस्टमार्टम का बहाना हो। यहाँ सब चलता है।”
मियाँ का खच्चर हिनहिनाया। पादा जी आश्चर्यचकित मियाँ का मुख निहारने लगे।
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