बस्ती में जो फैला है
शायरी | नज़्म हेमन्त कुमार शर्मा1 Sep 2023 (अंक: 236, प्रथम, 2023 में प्रकाशित)
बस्ती में जो फैला है,
विराने में जनाब मिला।
नींद से कोई ताल्लुक़ नहीं,
चलता फिरता ख़्वाब मिला।
उस्ताद की कोई इज़्ज़त है,
शोहदों को आदाब मिला।
बेटी की ख़ुश ऑंखों को देख,
पल में सवाब मिला।
वो देखो अब तक ज़िन्दा है,
अपनों से कितना अज़ाब मिला।
अधरों पे मुस्कान रही,
ऑंखों में चेनाब मिला।
अन्य संबंधित लेख/रचनाएं
टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
कविता
- अगर जीवन फूल होता
- कहते कहते चुप हो गया
- काग़ज़ की कश्ती
- किसान की गत
- खिल गया काँटों के बीच
- घन का आँचल
- जीवन में
- दिन उजाला
- नगर से दूर एकांत में
- नदी के पार जाना है
- पाणि से छुआ
- पानी में मिल जाएँगे
- प्रभात हुई
- प्रेम की कसौटी पर
- बहुत हुई अब याद
- मन इन्द्रधनुष
- मन की विजय
- मैं भी बच्चे की तरह रोना चाहता हूँ
- राम का अस्तित्व
- रेत में दुख की
- वर्षा
- वो साइकिल
- सितम कितने बयाँ
- सुहानी बातें
- ख़ुदा इतना तो कर
कहानी
लघुकथा
हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी
नज़्म
सांस्कृतिक कथा
चिन्तन
ललित निबन्ध
विडियो
उपलब्ध नहीं
ऑडियो
उपलब्ध नहीं