खिल गया काँटों के बीच
काव्य साहित्य | कविता हेमन्त कुमार शर्मा15 Mar 2024 (अंक: 249, द्वितीय, 2024 में प्रकाशित)
खिल गया काँटों के बीच,
और तुम हौसला पूछते हो।
कितनी दुश्वारियों में जी गया,
साधारण का जूझना भूलते हो।
आसमान में वही टूटेगा तारा,
जिस पर नज़र रखते हो।
आईना है साफ़ बता देगा,
आँखों में दर्द रखते हो।
तुम फिर से छले जाओगे,
मित्रों को कसोटी पर कसते हो।
सही कहता था कल वह,
पागल हो?
आशा अपनों से रखते हो।
नई उलझन है,
नई कहानी है,
इस दौर में प्रेम करते हो।
अन्य संबंधित लेख/रचनाएं
टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
कविता
- अगर जीवन फूल होता
- कहते कहते चुप हो गया
- काग़ज़ की कश्ती
- किसान की गत
- खिल गया काँटों के बीच
- घन का आँचल
- जीवन में
- दिन उजाला
- नगर से दूर एकांत में
- नदी के पार जाना है
- पाणि से छुआ
- पानी में मिल जाएँगे
- प्रभात हुई
- प्रेम की कसौटी पर
- बहुत हुई अब याद
- मन इन्द्रधनुष
- मन की विजय
- मैं भी बच्चे की तरह रोना चाहता हूँ
- राम का अस्तित्व
- रेत में दुख की
- वर्षा
- वो साइकिल
- सितम कितने बयाँ
- सुहानी बातें
- ख़ुदा इतना तो कर
कहानी
लघुकथा
हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी
नज़्म
सांस्कृतिक कथा
चिन्तन
ललित निबन्ध
विडियो
उपलब्ध नहीं
ऑडियो
उपलब्ध नहीं