खिल गया काँटों के बीच
काव्य साहित्य | कविता हेमन्त कुमार शर्मा15 Mar 2024 (अंक: 249, द्वितीय, 2024 में प्रकाशित)
खिल गया काँटों के बीच,
और तुम हौसला पूछते हो।
कितनी दुश्वारियों में जी गया,
साधारण का जूझना भूलते हो।
आसमान में वही टूटेगा तारा,
जिस पर नज़र रखते हो।
आईना है साफ़ बता देगा,
आँखों में दर्द रखते हो।
तुम फिर से छले जाओगे,
मित्रों को कसोटी पर कसते हो।
सही कहता था कल वह,
पागल हो?
आशा अपनों से रखते हो।
नई उलझन है,
नई कहानी है,
इस दौर में प्रेम करते हो।
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