व्यथा
काव्य साहित्य | कविता - क्षणिका भीकम सिंह1 Nov 2022 (अंक: 216, प्रथम, 2022 में प्रकाशित)
ओखली गूँगी हुई
सिलबट्टे का भी
निकला दम
अब बताओ
दुःखों को
कहाँ कूटे हम।
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सरोजिनी पाण्डेय 2022/11/08 04:48 AM
स्त्रियां तो अनादि कल से ओखली -सिलबट्टे पर कूटती पीसती रहीं क्या वे अपने दुखों को भी कभी कूट और पीस पाईं? यहाँ तक कि आज भी मिक्सर ग्राइंडर के ज़माने में वे 'लिक्विफाई 'कर दी जाती हैं अपना व्यक्तित्व वे खुलकर कहां दिखा पाती हैं ???