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मिट्टी डाल

 

“तुम सचिव तो हो गये हो लरैनबीर! लेकिन जानते कुछ नहीं हो,” जनाब ने कहा। 

लरैनबीर ने मुँह लटका लिया। 

दिन के दस बजे हैं। दोनों महाविद्यालय के मीटिंग हाॅल में बैठे हैं। चारों तरफ़ प्रबंध समिति के सदस्य बैठे हैं। बाहर छात्र मुर्दाबाद कर रहे हैं। हाॅल में फैली बदबू से पता चल रहा है कि आचार्य दीवार से कान लगाये सिगरेट पी रहा है। आचार्य को चार दिन पहले शो-कॉज़ नोटिस मिला है। उसी केस को ज्यों का त्यों जनाब ने प्रबंध समिति के सामने रखा है। 

“तुम को कुछ मालूम नहीं है लरैनबीर!” जनाब ने फिर कहा। 

“लरैनबीर! लरैनबीर! कहकर, सचिव साहब का अपमान कर रहे हो जनाब!” सदस्य चीखने-चिल्लाने लगे। 

जनाब टाई की गाँठ ठीक करने लगा, उसके बाद जेब से खैनी निकालकर ठिगने से शिक्षक प्रतिनिधि के हाथ पर रख दी। 

ठिगने से शिक्षक प्रतिनिधि ने मुस्कुराकर कहा, “आचार्य के शो-कॉज़ नोटिस पर चर्चा कर लें?” 

“भाड़ में गया शो-कॉज़ नोटिस,” सदस्य फिर चीखने-चिल्लाने लगे। 

शाम के चार बज गए। 

एक सदस्य ने चिढ़कर कहा, “सचिव सहाब! मिटिंग को एक माह के लिए स्थगित कर दो।” 

यह सुनते ही दीवार से कान लगाये खड़ा आचार्य धड़-धड़ करता हाॅल में घुस आया। उसका मन-मयूर नाचने लगा। उसकी इच्छा हुई कि हाॅल से विभाग तक यों ही दौड़ जाये। शो-कॉज़ नोटिस मिलने के समय उसके दिल का जो रक्तचाप घट गया था, मानो अब रक्त संचालन बढ़ गया हो, अति आग्रहपूर्वक सचिव से कहा, “धन्यवाद! धन्यवाद सर!”

ठिगना-सा शिक्षक प्रतिनिधि जनाब के घुटने पर हाथ रखकर दबाता रहा। छात्र मुर्दाबाद का प्रलाप करते चुप हो गए। शो-कॉज़ नोटिस पर मिट्टी डाल दी। 

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