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चिकना घड़ा

 

ख़ाली पीरियड में उसके पास समय काटने के लिए कोई ना कोई महिला प्रोफ़ेसर आ ही जाती थी। कहने को था कि समय काटने को आती थी वास्तव में प्राचार्य की रिपोर्ट देने या अपने मन की निकालने को लेकर आती थी। उनकी अपनात-आपसदारी एक जाति विशेष की प्रबंध समिति के माध्यम से पक्की होती थी। मानो, महाविद्यालय का सारांश रसायन विज्ञान विभाग में ही हो। वह भी केमेस्ट्री पढ़ाना छोड़ के गाहे-बगाहे कंधे उचकाने की कोशिश करता रहता। 

इसी बात को लेकर लोग खुसर-पुसर करने लगे, कुछ मुँह के सामने कहने लगे, “रसायन विज्ञान विभाग नहीं-प्रेम कुंज है।”

आज तो हद हो गयी, एक अभिभावक मुट्ठी बाँधे रसायन विज्ञान विभाग में आ खड़ा हुआ। उसकी दोनों आँखें जल रही थीं। धमकी के लहजे में उसने कहा, “कूण सा है? जो छोरी ने तंग करै।”

“. . . .” कोई जवाब नहीं। 

बाहर छात्रों की भीड़ इकट्ठा हो गयी। सिर झुका कर वह बैठा रहा और बीच-बीच में खिड़की के बाहर झाँकता रहा, फिर साहस बटोर कर प्राचार्य के पास जा पहुँचा। प्राचार्य सब कुछ जानता था, तुरंत सस्पेंड करने का आदेश प्रबंध समिति को अग्रसरित कर दिया, और साथ-साथ उसी आदेश को रद्द करने के लिए प्रबंध समिति के सचिव को फोन भी कर दिया। 

छात्र छितरा गए। कुछ कर्मचारी इस तमाशे में पार्ट अदा करते दिखे, कुछ आनन्द विभोर होते। 

वह कुछ क्षण विचलित हुआ, और अगले ही क्षण फिर से महिलाओं की बातों में व्यस्त हो गया। 

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