प्रेम–02
काव्य साहित्य | कविता भीकम सिंह1 Jul 2024 (अंक: 256, प्रथम, 2024 में प्रकाशित)
1.
बारिश होने लगी है
सावन के सपने
झरने लगे हैं
आसमान ने
तारों की गतिविधियाँ
स्थगित कर दी हैं
मेरे सपने मरने लगे हैं।
2.
हूक की तरह
उठ रहा है मेघ,
तुम्हारे सिवा
यह सच कोई नहीं जानता
नींद उचटती रहती है
तुम्हारे पक्ष में।
3.
चाॅंद नहीं आया
आया यादों का वायुदीप्ति-सा
धूमिल प्रकाश
गुज़र गई रात
ढूँढ़ते-ढूँढ़ते
सारा आकाश।
4.
प्रेम की वे स्मृतियाँ
जिनके पराग कणों से
खिले थे मन
और कई दिनों बाद
तन की कोख का दुःख पता चला था
मैं उन्हें कभी याद करना नहीं चाहता
परन्तु कुछ दिन ही रोक पाता हूँ
और वो आ जाती हैं
जैसे स्मृतियों ने कोई जाल रचा के रखा है
या कहीं कोई प्रेम बचा के रखा है।
5.
मैं क्या देखूँ
तुम्हारे पास बैठकर
हमारे निषेध से घिर गया है क्षितिज
अब नहीं उतरता प्रेम।
6.
मैं इस गुमान में था
कि कभी ना कभी
गुज़रूँगा तेरे उजालों से
थोड़ी देर के लिए
परन्तु
कोई ना कोई ले ही आता है
मुझे मेरे अँधेरों में
थोड़ी देर के लिए।
7.
वह जगजीत सिंह को सुनता है
और मन में बस जाता है
प्रेम का यह लक्षण
सबसे ऊपर आता है।
8.
चलता रहा प्रेम
केवल ख़्वाब में
प्रेम कहानी रही, यही
बस लब्बोलुआब में।
9.
मैं
दुनियादारी का
आवरण ढाँपकर
तुम्हारे बारे में
सोचता-सोचता पहुँचा
वहीं ढाँक पर।
10.
मेरे प्रेम पत्र
तुम अपने पति की जेबों में
नहीं रख सकती
मैं जानता हूँ
क्योंकि
दुनियादारी के आवरण
भरे पड़े हैं उनमें
मैं जानता हूँ।
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