भीकम सिंह – ताँका – प्रेम 002
काव्य साहित्य | कविता-ताँका भीकम सिंह1 Feb 2024 (अंक: 246, प्रथम, 2024 में प्रकाशित)
1.
तह-पे-तह
मख़मली दूबों पे
हुई जो बातें
विछोह में वो यादें
काली करती रातें।
2.
पैर बाहर
ठिठके कई बार
तेरे ही वास्ते
खुले ना फिर भी
मुलाक़ात के रास्ते।
3.
खिली ज्यों कली
बाग़ों में, बहारों में
बढ़ा त्यों ताप
गली के, मुहल्लों के
बुझे-से शरारों में।
4.
प्यार की पर्तें
गोपनीय ही रहीं
कही ना कासु
तन का ताप बढ़ा
कोर में आए आँसु।
5.
फुर हो गई
तनिक-सा छूकर
रुकी-सी याद
प्रेम के दंश कई
दुखे, वर्षों के बाद।
अन्य संबंधित लेख/रचनाएं
प्रीति अग्रवाल ’अनुजा’ – ताँका – 001
कविता-ताँका | प्रीति अग्रवाल 'अनुजा'1. खोजते फिरे ईश्वर नहीं मिला हृदय…
टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
यात्रा-संस्मरण
शोध निबन्ध
कविता
कविता-ताँका
- प्रेम
- भीकम सिंह – ताँका – 001
- भीकम सिंह – ताँका – नदी 001
- भीकम सिंह – ताँका – नदी 002
- भीकम सिंह – ताँका – नव वर्ष
- भीकम सिंह – ताँका – प्रेम 001
- भीकम सिंह – ताँका – प्रेम 002
- भीकम सिंह – ताँका – प्रेम 003
- भीकम सिंह – ताँका – प्रेम 004
- भीकम सिंह – ताँका – प्रेम 005
- भीकम सिंह – ताँका – प्रेम 006
- भीकम सिंह – ताँका – प्रेम 007
- भीकम सिंह – ताँका – प्रेम 008
- भीकम सिंह – ताँका – प्रेम 009
- भीकम सिंह – ताँका – प्रेम 010
लघुकथा
कहानी
अनूदित लघुकथा
कविता - हाइकु
चोका
कविता - क्षणिका
विडियो
उपलब्ध नहीं
ऑडियो
उपलब्ध नहीं