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सफ़ेद पोश

 

जाड़ा अपने उफान पर था जब वो कैंटर से चोरी करने के उद्देश्य से उतरे। घने कोहरे की परतों ने घर के दृश्यों को धूमिल कर दिया था। जिस घर में उन्हें भैंस चोरी करनी थी, वहाँ पर सोलर लाइट डरी ठिठुरी-सी टिमटिमा रही थी, तभी खटपट की आवाज़ से वे चौंके। 

दो आदमियों ने एक को पकड़ कर बाॅंधा हुआ था और साथ ही उन दो में एक गालियाॅं दे रहा था, “हरामज़ादे! चोरियों की नई-नई क़िस्में आ रही हैं, तू और तेरी बिरादरी अभी भी इसी परम्परागत भैंस चोरी में लगी है . . . अनपढ़ . . . जाहिल . . . पढ़कर सफ़ेदपोश चोर क्यों नहीं बनते?”

उन चोरों ने एक दूसरे की ओर देखा, ‘सफ़ेदपोश चोर’ शब्द पहली बार सुना। एक ने हैरान होकर दूसरे से पूछा, “सफ़ेदपोश चोर कैसा होता है?”
दूसरे ने जवाब दिया, “सफ़ेदपोश यानी . . . यानी . . . या . . .”

पहला हॅंसकर बोला, “समझ गया, कुछ बड़ा ही होगा।”

यह कहते हुए पहले की आँखें फैल गईं थीं। मानो इतना बड़ा कि वह बता नहीं सकता। 

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