कविता
काव्य साहित्य | कविता भीकम सिंह15 Mar 2024 (अंक: 249, द्वितीय, 2024 में प्रकाशित)
सूरज को खटकती है
साढ़े तेईस अंश की अक्षांश रेखा
जब
मौसम की लंबी ऊॅंगलियाॅं
उसकी उदासी छू लेती हैं
नम हवा
वर्षा की गंध घोलती है
तो निर्मित होता है
सुखमय वातावरण
तब पृथ्वी का अक्ष
लिख रहा होता है
अपने उस हिस्से पर
ख़ूबसूरत कविताऍं।
अन्य संबंधित लेख/रचनाएं
टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
यात्रा-संस्मरण
कविता
कविता-ताँका
- प्रेम
- भीकम सिंह – ताँका – 001
- भीकम सिंह – ताँका – नदी 001
- भीकम सिंह – ताँका – नदी 002
- भीकम सिंह – ताँका – नव वर्ष
- भीकम सिंह – ताँका – प्रेम 001
- भीकम सिंह – ताँका – प्रेम 002
- भीकम सिंह – ताँका – प्रेम 003
- भीकम सिंह – ताँका – प्रेम 004
- भीकम सिंह – ताँका – प्रेम 005
- भीकम सिंह – ताँका – प्रेम 006
- भीकम सिंह – ताँका – प्रेम 007
- भीकम सिंह – ताँका – प्रेम 008
- भीकम सिंह – ताँका – प्रेम 009
- भीकम सिंह – ताँका – प्रेम 010
लघुकथा
कहानी
अनूदित लघुकथा
कविता - हाइकु
चोका
कविता - क्षणिका
विडियो
उपलब्ध नहीं
ऑडियो
उपलब्ध नहीं
संजीव वर्मा 2024/03/14 05:14 PM
सजीव चित्रण काव्य