कुत्ती बिरादरी
कथा साहित्य | लघुकथा भीकम सिंह1 Oct 2023 (अंक: 238, प्रथम, 2023 में प्रकाशित)
भीड़ ने ज़ोर से दरवाज़ा भड़भड़ाया, विधायक को कर्कश स्वर भी सुनाई पड़े। हज़ारों आदमी तूफ़ान की तरह विधायक निवास पर आ पहुँचे। वैसे तो ऐसे ऊँच-नीचे राजनीति में होते रहते हैं परन्तु यह पूरी बिरादरी पर कालिख पोतने का प्रकरण था, जो विधायक की फ़ज़ीहत का कारण बना।
हुआ यह कि किसी ने चोरी से उद्घाटन शिलापट्ट पर विधायक की जाति (शब्द) पर कालिख पोत दी और लिख दिया विधायक सबका है। यह देखकर विधायक की बिरादरी के लोग आगबबूला हो गए और विधायक पर ही मिली-भगत का आरोप जड़ दिया। उत्तर में विधायक किसी तरह हकलाकर बोला, “समय आने पर सब बताऊँगा अब मुझे कोई बात नहीं करनी।”
बिरादरी के लोगों को यह उत्तर अपमान जनक लगा।
झेंपा-सा विधायक उद्घाटन-स्थल से घर आ गया।
एक मुँह से दूसरे मुँह को होती हुई यह बात हवा की तरह चारों ओर फैल गयी, किसी को प्रचार नहीं करना पड़ा। विधायक का घर घटना-स्थल से कुछ ही दूरी पर है। लौंडों-लफाड़ों का विकराल रूप देखने के बावजूद विधायक घर से नहीं खिसका। बल्कि बेहयाई से किए इस अपमान का विधायक प्रतिकार करना चाहता था, पर कोई पुख़्ता ज़मीन नज़र नहीं आ रही थी जिस पर खड़ा होकर विधायक अपना पक्ष बिरादरी के सामने रख सके।
एकाएक दरवाज़ा खोलकर विधायक खड़ा हुआ। विधायक का दिल भीड़ की गरदन दबोचने का हुआ। आग्नेय दृष्टि से देखकर कहा, “हमारी बिरादरी कुत्ती है, मुझे इसका वोट नहीं चाहिए, मुझे माफ़ करो बस!!” और भड़ से दरवाज़ा बन्द कर लिया।
भीड़ भी कूँ . . . कूँ करती चली गई। विधायक के इस व्यवहार से सबसे ज़्यादा दुःख समर्थकों को हुआ।
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