भीकम सिंह – ताँका – नदी 001
काव्य साहित्य | कविता-ताँका भीकम सिंह1 May 2024 (अंक: 252, प्रथम, 2024 में प्रकाशित)
1.
नदी को देखा
अपने ही पाट पे
दूब को बोते
चुप देखा लोगों ने
यह हादसा होते।
2.
नदी ना आई
घाटों पे सूख चली
पुरानी काई
फिसले हैं मौसम
देखके चलो भाई।
3.
पेड़ों ने थामा
ऑंख मलते हुए
नदी का रुख़
वरना रिस जाता
शताब्दियों का सुख।
4.
बारिश हुई
नदी चलने लगी
बॅंधी नाव की
रस्सी कसमसाई,
और खुलने लगी।
5.
पाट ने पूछा
बताओ मेरी हद
कब तक यूॅं
कम करूॅं मैं क़द
नदी रोई, शायद।
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