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शगुन का लिफ़ाफ़ा

 

जाति का अंहकार उसके पोर-पोर में समाया हुआ था। वह पहले दर्जे का गुंडा, लोफ़र था। इसी आधार पर उसे विद्या सभा में सदस्यता मिली और अब वह महाविद्यालय की प्रबंध समिति में सहायक सचिव था। ऐसे में अपने भाई की बेटी की शादी का निमंत्रण पत्र देने के लिए अपने लाव-लश्कर के साथ मारुति जिप्सी में सवार होकर महाविद्यालय में आया और पीछे से उसकी आवाज़ भी सुनाई दी, “ऐसा है डॉक्टर साब! म्हारी भतीजी की शादी है, न्यौते खातर कार्ड लाया हूँ, इन्हें बँटवा दो।” और निमंत्रण पत्रों का एक गट्ठर मेज़ पर गिरा दिया। 

कुछ देर ठिगना-सा प्राचार्य मुॅंह नीचा किए कुछ सोचता रहा फिर बोला, “ठीक है।”

उधर मेंहदी वाले दिन महाविद्यालय की तमाम महिला प्रोफ़ेसर लड़की को मेंहदी लगाने गईं। 

आज शाम का झुटपुटा था। नन्दन फ़ॉर्म में सभी प्रोफ़ेसर कर्मचारी जेबों में लिफ़ाफ़ा लिए मौजूद थे। परन्तु उसे हाथ मिलाने में संकोच हो रहा था वह सभी से ‘रोम-रोम’ कह रहा था। इसके अलावा एक नई बात वहाँ देखने को मिली। जो शगुन के लड्डू के डिब्बे बँटने थे, वे केवल रिश्तेदारों को ही बाँटे जा रहे थे। सामने खड़ा फोटोग्राफर उनके फोटो लिए जा रहा था। नन्दन फ़ॉर्म के एक कोने में महाविद्यालय के प्रोफ़ेसर कर्मचारी इंतज़ार कर रहे थे, सहायक सचिव का बुलावा पाते ही फोटो उपस्थिति दर्ज होगी और लिफ़ाफ़ा देने की रस्म। 

बुलावा लेकर ठिगना-सा प्राचार्य आ रहा होगा, इसी उधेड़बुन में सभी खड़े-खड़े पैर सीधे कर रहे थे। महिला प्रोफ़ेसरों के घर से फोन आ रहे थे फिर भी वे भद्रता के नाते कुढ़ रहीं थीं, पर मुॅंह से कुछ बोल नहीं रहीं थीं। मोबाइल में टाइम देख रहीं थीं बार-बार। 

अंत में कष्टमय प्रतीक्षा की घड़ियों को समाप्त करता ठिगने-से प्राचार्य और सहायक सचिव का चेहरा दिखलायी दिया। सहायक सचिव ने बड़ी-बड़ी आँखों से, पहचानी पहचानी-सी नज़रों से सबको देखा . . . और लिफ़ाफ़ों के बैग को लटकाकर वापस चल पड़ा। सभी ने उनकी पीठ को हाथ जोड़कर प्रणाम किया। 

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