भीकम सिंह – हाइकु – 003
काव्य साहित्य | कविता - हाइकु भीकम सिंह1 Apr 2025 (अंक: 274, प्रथम, 2025 में प्रकाशित)
1.
आप ज्यों आए
बसंत के स्मरण
कसमसाए।
2.
जेठ की भोर
लिए खड़ी यादों का
गुलमोहर।
3.
मौन पेड़ों से
ताज़ा हवा चली है
तेरी गली है?
4.
तेरे ही लिए
बुझने को जले हैं,
हम वो दीये।
5.
प्रेम मन का
आँखों में आ जाता है
ओस कण-सा।
6.
प्रेम के लिए
बया गिन-गिनके
गूँथे तिनके।
7.
आँधी से हारे
मौन के पल हुए
खेत बेचारे।
8.
खेत में दिन
सिर्फ़ हाथ मलके
जाता ढलके।
9.
क्या थे, क्या रहे
आँखों में कई ख़्वाब
बहते रहे।
10.
जल के लिए
मुड़कर देख लो
कल के लिए।
अन्य संबंधित लेख/रचनाएं
टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
लघुकथा
पुस्तक समीक्षा
चोका
कविता - हाइकु
कविता-ताँका
- प्रेम
- भीकम सिंह – ताँका – 001
- भीकम सिंह – ताँका – नदी 001
- भीकम सिंह – ताँका – नदी 002
- भीकम सिंह – ताँका – नव वर्ष
- भीकम सिंह – ताँका – प्रेम 001
- भीकम सिंह – ताँका – प्रेम 002
- भीकम सिंह – ताँका – प्रेम 003
- भीकम सिंह – ताँका – प्रेम 004
- भीकम सिंह – ताँका – प्रेम 005
- भीकम सिंह – ताँका – प्रेम 006
- भीकम सिंह – ताँका – प्रेम 007
- भीकम सिंह – ताँका – प्रेम 008
- भीकम सिंह – ताँका – प्रेम 009
- भीकम सिंह – ताँका – प्रेम 010
- भीकम सिंह – ताँका – प्रेम 011
यात्रा-संस्मरण
शोध निबन्ध
कविता
कहानी
अनूदित लघुकथा
कविता - क्षणिका
विडियो
उपलब्ध नहीं
ऑडियो
उपलब्ध नहीं
संजीव वर्मा 2025/03/28 08:49 PM
सुन्दर रचना