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मिस्टर टॉम 

 

टॉम, डिक एण्ड हैरी अंग्रेज़ी नाम वाले देसी आचार्य एक ही विभाग में कार्यरत थे। हैरी ने अपना स्थानांतरण दूसरे महाविद्यालय में करा लिया था। अब टॉम और डिक ही दिन भर बक-बक करते और ठहाके लगाते रहते। उनकी चिरकुट बातें किसी को भी भिन्ना देती थीं। उनका फ़ुज़ूल शोर, बीकर टूटने की आवाज़ें प्राचार्य केबिन तक पहुँच जातीं तो प्राचार्य को अपने कान बन्द करने पड़ते। टॉम और डिक नहीं जानते थे कि उनकी बातों से महाविद्यालय में कितना क्लेश होता है। लेकिन प्राचार्य चुप्पी साधकर ही अपने अन्दर विश्वास पैदा करता रहता। 

आज टॉम प्राचार्य केबिन में जाकर बैठ गया। उसके हाथ में सिगरेट थी, जिस हाथ में सिगरेट थी वह काँप रहा था। जिससे साफ़ था कि वह घबरा रहा है फिर भी सिगरेट पीता रहा। प्राचार्य ने एक शब्द भी मुँह से नहीं निकला। आख़िर टॉम ने ही ख़ामोशी तोड़ी। 

“जनाब! मैं आपसे कुछ पूछना चाहता हूँ, आपने कभी कोई शोध-पत्र लिखा है?” 

टॉम की इस तरह की बातें सुनकर प्राचार्य को घोर आश्चर्य हुआ। टॉम उससे कोई मज़ाक-वजाक नहीं कर रहा है, इस बात से प्राचार्य पूरी तरह आश्वस्त था। 

प्राचार्य ने गंभीरतापूर्वक जवाब दिया, “नहीं।”

“तो जनाब! हमसे क्यों माँग रहे हो, शोध-पत्रों की प्रमोशन में क्या आवश्यकता है, उनका क्या सिग्निफिकेंस है?” 

प्राचार्य मन ही मन बेचैन हो उठा और ड्रार में कुछ टटोलने लगा। एक जी.ओ. टॉम को पकड़ाकर कहा, “लिजिए।”

इसी बीच महाविद्यालय के घंटे ने पाँच टंकार भरी, तो प्राचार्य बोले, “मिस्टर टॉम! क्लास में जाइये, घंटा लग चुका है।” 

टॉम खड़ा हुआ और अपना टकला खुजलाते हुए बोला, “क्लास में जाये घंटा।”

यह सुनकर प्राचार्य लाश की तरह कुर्सी में टिका रहा। महाविद्यालय यथावत चलता रहा। 

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