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बूमरैंग 

 

अपने विभाग में कुर्सी पर बैठकर कुछ इधर-उधर की बातें सोचते-सोचते न जाने कब उसकी आँखें लग गयी। एकाएक नींद खुलने पर वह दीवार घड़ी में समय देखकर चौंक उठा। मिलिट्री ऑर्डर की तरह कक्षा में पहुँचा। पूरी कक्षा का चेहरा प्रसन्नता से जगमगा उठा। वह बढ़िया कोट-पैंट और टाई-शाई बाँधे हुए था, मुस्कराकर उसने अपना विषय दोहराया। बोलते वक़्त उसके साफ़ और सुन्दर दाँत दिख रहे थे। उसका विषय ‘गाँधी की प्रासंगिकता’ छात्रों में जिज्ञासा जगाने वाला था। 

एक छात्र ने पूछा, “सर! कैसे?” 

फिर उसने समझाया। 

छात्र फिर बोला, “अच्छा, ठीक है सर।”

अगले दिन वह ठीक समय पर पहुँचा। और एकाग्रता एवं निपुणता के साथ ब्लैक बोर्ड पर लाठी और चश्मे का चित्र उकेर दिया। थोड़ी देर बाद छात्रों ने देखा वही लाठी और चश्मे के चित्र ने धीरे-धीरे महात्मा गाँधी का रूप अख़्तियार कर लिया है। जैसे जादूगरी में दिखाई पड़ता है। वाह! वाक़ई सुन्दर है। धीरे-धीरे छात्रों में कौतूहल बढ़ने लगा, उसके बाद उसने डस्टर से रघुपति राघव राजा राम . . . की अद्भुत आवाज़ निकालते हुए बोर्ड को घिसा, और सावधान की मुद्रा में स्थिर हो गया। वह उसी मुद्रा में कुछ देर तक रहा, फिर पूरी कक्षा खड़ी हो गयी। 

पूरी कक्षा ने एक सुर में कहा, “गाँधी जयन्ती की हार्दिक शुभकामनाएँ सर!”

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