भीकम सिंह – ताँका – 001
काव्य साहित्य | कविता-ताँका भीकम सिंह15 Jan 2024 (अंक: 245, द्वितीय, 2024 में प्रकाशित)
1.
कैसे उमड़ा?
मेरी आँखों में प्यार
कैसे बरसा?
बहा ले गया सब
हुआ एक अरसा।
2.
एक मुस्कान
इतना कह गई
डर के बीच
जैसे आह्लाद हुआ
दो हृदयों के बीच
3.
वक़्त-बेवक़्त
बैठती सटकर
जाती अक़्सर
मोड़ काटती हुई
प्यार में नदी कई।
4.
हुई हैरान
दीयों का धुआँ देख
सहम गई
शलभ के प्रेम की
महत्वाकांक्षा कई।
5.
एक दूजे को
पाने खोने के दिन
दोनों ओर हैं
रिश्तों को बाँधे हुए
बस एक डोर है।
6.
कहाँ से आता
किसी को पता नहीं
कहाँ को जाता
प्रेम का स्थायी भाव
फिर लौट ना पाता।
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