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अधकचरा 

 

अंगरेजी के टूटे-फूटे वाक्यों का सहारा लेकर प्रोफ़ेसर कैमिस्ट्री पढ़ा रहा है, अंगरेजी में उलझ गया तो प्राचार्य का निकम्मापन बताने लगा, तभी आंचलिक शब्दों का प्रयोग करते हुए एक छात्र ने कहा, “गुरु जी! आवै-जावै तो तमै कुछ है नी . . . अर प्राचार्य को गाली दिए बिना थारा पूरा नी पडै . . . लो वो आ रहे थारै फूफा . . . उन्हीं से कह दो . . . तमै सरम कोनी आवै।”

छात्र के शब्दों का पुछल्ला “तमै सरम कोनी आवै” बता रहा था प्रोफ़ेसर का मूल चरित्र। 

प्रोफ़ेसर ने चुप्पी साधकर देखा, प्राचार्य उस वक़्त थोड़ा आगे निकल गया, लेकिन प्रोफ़ेसर का काला रंग लाल पड़ गया, फिर प्रोफ़ेसर उसी तेवर में बड़बड़ाया . . . वह शब्दों की कराह सुन रहा है, ब्लैक बोर्ड पर लिखते हुए उसे ऐसा लग रहा है मानो भार पड़ रहा हो हाथों पर . . . हर शब्द धकेलना पड़ रहा हो जैसे . . . दिस . . . दिस . . . दिस केमिकल (जिसका कुछ अर्थ नहीं था) कहा तो घंटा बज गया। 

प्रोफ़ेसर ने चॉक सना हाथ मुँह पर फेरकर राहत की साँस ली, क्लास ने ठहाका लगाया, प्रोफ़ेसर ने देखा, मानो वह बम फटने का दृश्य देख रहा है, फिर वह चुप-चाप ब्लैक बोर्ड के किनारे खड़ा कक्ष ख़ाली होने की राह देखने लगा। 

एक छात्र ने पहचानकर कहा, “सर! आपका ब्लड प्रेशर बढ़ गया।”

प्रोफ़ेसर ने जेब से रूमाल निकालकर पसीना पोंछा तो वह देखकर हैरान रह गया कि सूखा रूमाल पसीने से तर-ब-तर हो गया। तभी पीछे से एक हाथ कंधा थपथापने लगा, उसने मुड़कर देखा तो प्राचार्य कह रहा था, “जनाब! तैयारी से आया करो, ये बच्चे नहीं बाप हैं।”

प्रोफ़ेसर को मुफ़्तख़ोर-सी दीनता का अहसाहस हुआ . . . 

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