भीकम सिंह – ताँका – नदी 002
काव्य साहित्य | कविता-ताँका भीकम सिंह15 May 2024 (अंक: 253, द्वितीय, 2024 में प्रकाशित)
1.
बाॅंध के पीछे
बैठी है नदी चुप
जी तो करता
तोड़के खामोशियाॅं
ले, नये मोड़ कुछ।
2.
नदी ने देखा
बारिश का मौसम
हुआ गुमान
नींद टूटी पेड़ों की
ख़ौफ में आसमान।
3.
इल्ज़ाम दिये
गाॅंव-गलियारों को
नदी ने देखा
ज़हर उगलते
नालों की दीवारों को।
4.
हाॅंफता पानी
कछारों में फिरता
दर-ब-दर
लेकर चलती हैं
नदियाॅं चुल्लू-भर।
5.
जाॅं-बाज़ नदी
नालों की क़ैद में है
कुछ दिनों से
सिन्धु बड़ा नाराज़
दिखा, कुछ दिनों से।
अन्य संबंधित लेख/रचनाएं
प्रीति अग्रवाल ’अनुजा’ – ताँका – 001
कविता-ताँका | प्रीति अग्रवाल 'अनुजा'1. खोजते फिरे ईश्वर नहीं मिला हृदय…
टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
लघुकथा
- अधकचरा
- आईसिस की शाखा
- कुत्ती बिरादरी
- कृषि (का) नून
- खेद है
- गंदगी
- गुर्जरी
- चिकना घड़ा
- छन की आवाज़
- ढहता विश्वास
- नासमझ
- नीयत
- पाजी नज़्में
- पानी के लिए
- पोर्टर
- बड़ी बात
- बूमरैंग
- बेतुकी
- मिट्टी डाल
- मिस्टर टॉम
- मुखौटा
- मुफ़्तख़ोर
- यथावत
- लठर-लइया
- लीच
- लूट
- वज़नी ट्रैकर
- विजेता
- शगुन का लिफ़ाफ़ा
- शो-ऑफ़
- सलाह
- सूत ना कपास
- सोच
- सफ़ेद पोश
- हम ख़तरा हैं?
पुस्तक समीक्षा
चोका
कविता - हाइकु
कविता-ताँका
- प्रेम
- भीकम सिंह – ताँका – 001
- भीकम सिंह – ताँका – नदी 001
- भीकम सिंह – ताँका – नदी 002
- भीकम सिंह – ताँका – नव वर्ष
- भीकम सिंह – ताँका – प्रेम 001
- भीकम सिंह – ताँका – प्रेम 002
- भीकम सिंह – ताँका – प्रेम 003
- भीकम सिंह – ताँका – प्रेम 004
- भीकम सिंह – ताँका – प्रेम 005
- भीकम सिंह – ताँका – प्रेम 006
- भीकम सिंह – ताँका – प्रेम 007
- भीकम सिंह – ताँका – प्रेम 008
- भीकम सिंह – ताँका – प्रेम 009
- भीकम सिंह – ताँका – प्रेम 010
- भीकम सिंह – ताँका – प्रेम 011
यात्रा-संस्मरण
शोध निबन्ध
कविता
कहानी
अनूदित लघुकथा
कविता - क्षणिका
विडियो
उपलब्ध नहीं
ऑडियो
उपलब्ध नहीं