ढहता विश्वास
कथा साहित्य | लघुकथा भीकम सिंह15 Oct 2023 (अंक: 239, द्वितीय, 2023 में प्रकाशित)
आज भी वह, “हर ज़ोर ज़ुल्म की टक्कर में, संघर्ष हमारा नारा है” के सामूहिक उद्घोष से एनटीपीसी को गुंजायमान कर रहा था, और बीच-बीच में किसान एकता ज़िन्दाबाद! ज़िन्दाबाद! का नारा एनटीपीसी सुरक्षा कर्मियों के मस्तिष्क को सुन्न कर रहा था।
एनटीपीसी गेट के सामने किसानों ने पल्लियाँ बिछायी हुई थीं, जिन पर बैठकर वे हुक्का गुड़गुड़ा रहे थे। उसने काँपते तन और मन के साथ जीएम को फोन मिलाया। नारेबाज़ी की आवाज़ों से धरने की गरमी जाँचते हुए जीएम बोला, “भूमि अधिग्रहण सम्बन्धी फ़ाइल लेकर अकेले ऑफ़िस में आ जाओ।”
“अकेले क्यों?” वह फोन पर चिल्लाया, परन्तु दिल में उम्मीद-सी जगी।
दिन छिप चुका था उजाला, अँधेरे में बदलने जा रहा था।
उसको सामने देख जीएम ने प्रफुल्लित होते हुए कहा, “आइये! आइये!” और हाथ आगे बढ़ाया।
उसने भी एहसानफ़रामोशों की तरह विश्वास ढाहते हुए हाथ मिला लिया।
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