अन्तरजाल पर
साहित्य-प्रेमियों की विश्राम-स्थली

काव्य साहित्य

कविता गीत-नवगीत गीतिका दोहे कविता - मुक्तक कविता - क्षणिका कवित-माहिया लोक गीत कविता - हाइकु कविता-तांका कविता-चोका कविता-सेदोका महाकाव्य चम्पू-काव्य खण्डकाव्य

शायरी

ग़ज़ल नज़्म रुबाई क़ता सजल

कथा-साहित्य

कहानी लघुकथा सांस्कृतिक कथा लोक कथा उपन्यास

हास्य/व्यंग्य

हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी हास्य व्यंग्य कविता

अनूदित साहित्य

अनूदित कविता अनूदित कहानी अनूदित लघुकथा अनूदित लोक कथा अनूदित आलेख

आलेख

साहित्यिक सांस्कृतिक आलेख सामाजिक चिन्तन शोध निबन्ध ललित निबन्ध हाइबुन काम की बात ऐतिहासिक सिनेमा और साहित्य सिनेमा चर्चा ललित कला स्वास्थ्य

सम्पादकीय

सम्पादकीय सूची

संस्मरण

आप-बीती स्मृति लेख व्यक्ति चित्र आत्मकथा वृत्तांत डायरी बच्चों के मुख से यात्रा संस्मरण रिपोर्ताज

बाल साहित्य

बाल साहित्य कविता बाल साहित्य कहानी बाल साहित्य लघुकथा बाल साहित्य नाटक बाल साहित्य आलेख किशोर साहित्य कविता किशोर साहित्य कहानी किशोर साहित्य लघुकथा किशोर हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी किशोर हास्य व्यंग्य कविता किशोर साहित्य नाटक किशोर साहित्य आलेख

नाट्य-साहित्य

नाटक एकांकी काव्य नाटक प्रहसन

अन्य

रेखाचित्र पत्र कार्यक्रम रिपोर्ट सम्पादकीय प्रतिक्रिया पर्यटन

साक्षात्कार

बात-चीत

समीक्षा

पुस्तक समीक्षा पुस्तक चर्चा रचना समीक्षा
कॉपीराइट © साहित्य कुंज. सर्वाधिकार सुरक्षित

ढहता विश्वास 

 

आज भी वह, “हर ज़ोर ज़ुल्म की टक्कर में, संघर्ष हमारा नारा है” के सामूहिक उद्घोष से एनटीपीसी को गुंजायमान कर रहा था, और बीच-बीच में किसान एकता ज़िन्दाबाद! ज़िन्दाबाद! का नारा एनटीपीसी सुरक्षा कर्मियों के मस्तिष्क को सुन्न कर रहा था। 

एनटीपीसी गेट के सामने किसानों ने पल्लियाँ बिछायी हुई थीं, जिन पर बैठकर वे हुक्का गुड़गुड़ा रहे थे। उसने काँपते तन और मन के साथ जीएम को फोन मिलाया। नारेबाज़ी की आवाज़ों से धरने की गरमी जाँचते हुए जीएम बोला, “भूमि अधिग्रहण सम्बन्धी फ़ाइल लेकर अकेले ऑफ़िस में आ जाओ।” 

“अकेले क्यों?” वह फोन पर चिल्लाया, परन्तु दिल में उम्मीद-सी जगी। 

दिन छिप चुका था उजाला, अँधेरे में बदलने जा रहा था। 

उसको सामने देख जीएम ने प्रफुल्लित होते हुए कहा, “आइये! आइये!” और हाथ आगे बढ़ाया। 

उसने भी एहसानफ़रामोशों की तरह विश्वास ढाहते हुए हाथ मिला लिया। 

अन्य संबंधित लेख/रचनाएं

105 नम्बर
|

‘105’! इस कॉलोनी में सब्ज़ी बेचते…

अँगूठे की छाप
|

सुबह छोटी बहन का फ़ोन आया। परेशान थी। घण्टा-भर…

अँधेरा
|

डॉक्टर की पर्ची दुकानदार को थमा कर भी चच्ची…

अंजुम जी
|

अवसाद कब किसे, क्यों, किस वज़ह से अपना शिकार…

टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

कविता-ताँका

कविता

यात्रा-संस्मरण

लघुकथा

कहानी

अनूदित लघुकथा

कविता - हाइकु

चोका

कविता - क्षणिका

विडियो

उपलब्ध नहीं

ऑडियो

उपलब्ध नहीं