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लूट

 

एक ही कोट में ज़िन्दगी काटने वाले गामा बंधु अपने गाॅंव में सबसे बुद्धिमान वकील कहे जाते हैं। किन्तु कोर्ट में आते-जाते बावले-से लगते हैं, किसी शादी-विवाह में होते हैं तो दोनों साथ-साथ काला कोट और कंठ में लगे बैंड के साथ ही सम्मिलित हो जाते हैं, लोग इनकी कंजूसी का मज़ाक उड़ाते हैं। आज के दौर में भी दोनों बंधु ग्यारह-ग्यारह रुपया कन्यादान करते हैं। 

कोर्ट की गलियों में भटकते मुवक्किल चैम्बर मस्तक पर उन्हें अधिवक्ता घोषित करती नेम प्लेट देखकर आ तो जाते हैं, परन्तु झाँसा देकर गली के अंतिम घुमाव पर बने चैम्बरों में अपने काम का वकील ढूँढ़ लेते हैं। 

आज बड़े बंधु ने समझाकर एक तीन सौ बानवे के पीड़ित को चैम्बर में भेजा। चैम्बर में दाख़िल होते ही पीड़ित ने छोटे बंधु से कहा, “वकील साहब! आ गया हूँ, हलाल करोगे या झटके में . . .”

छोटा बंधु मुस्कुरा कर बोला, “ये तो जज साहब के स्वाद पर निर्भर करता है।”

“मतलब?” 

“मतलब यदि मुवक्किल को समझाते तो ढूँढ़-ढूँढ़ कर नहीं लाते,” डायरी के पृष्ठ पलटते हुए छोटे बंधु ने कहा। 

“जी!” विचित्र भाव में पीड़ित बोला और हलाल की मुद्रा में थोड़ा पेमेन्ट कर दिया। 

छोटे बंधु ने डायरी देखते हुए फिर कहा, “और हाँ! लूट की एफ़आईआर की काॅपी?” 

“कौन-सी लूट की वकील साहब!” पीड़ित ने कहा। 

छोटा बंधु किंचित चकित हुआ, लेकिन चैम्बर में सन्नाटा पसर गया। 

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