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यथावत

 

दो मारुति जिप्सी कलैक्ट्रेट के सामने आकर रुकीं। उसके साथ दस-बारह आदमी जिप्सी से कूदे। उनके हाथ में काला रंग चुपड़ा था। सभी दनदनाते हुए तहसीलदार कार्यालय में घुसते चले गए। लेखपाल तख़्त पर बैठा रिपोर्ट पूरी कर रहा था। उसने आगे बढ़कर लेखपाल के हाथ से रिपोर्ट छीन ली, फिर कागज़ों को चिंदी-चिंदी करके लेखपाल के मुँह पर कालिख पोत दी। यह दृश्य देखकर पुलिस हरकत में आई तो उसने कहा, “भ्रष्टाचार पर नियंत्रण रखें, वरना मुँह काला किया जायेगा, चाहे वो कितना कितना बड़ा अधिकारी ही क्यों ना हो।”

उप-ज़िलाधिकारी के होंठों पर फीकी-सी मुस्कान तैर रही थी, परन्तु लेखपाल का बुरा हाल था, आँखों से आँसू ढुलकने की तैयारी में थे। होंठों में कँपकँपाहट भरी थी, फिर भी लेखपाल कुछ नहीं बोला। उसकी ख़ामोशी में जैसे चीख़ भरी थी। उप-ज़िलाधिकारी ख़ामोशी का अर्थ जानता था। उप-ज़िलाधिकारी यह भी जानता था कि मोर्चा-पार्टी वालो को कैसे ख़ुश रखा जाता है। 

उसी दिन एफ़ आई आर दर्ज़ हुई, गिरफ्तारियाॅं हुई, लेकिन उसका नाम रिपोर्ट में नहीं था। कलैक्ट्रेट का वातावरण भी यथावत था। 

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