गुलमोहर की बात
काव्य साहित्य | कविता भीकम सिंह1 Mar 2024 (अंक: 248, प्रथम, 2024 में प्रकाशित)
गुलमोहर की बात
लौट आई
आस-पास के कान,
खड़े हो रहे हैं।
ताप की नज़रों में
बसन्त के जाने का
कोई कौतूहल,
अटका हुआ है।
लम्हों को पकड़ने की
कोशिश में
सुलह कराती,
बात झगड़ती है।
खिड़की के सामने
क़सम-सी धूप
आज फिर,
सूरज दे रहा है।
अन्य संबंधित लेख/रचनाएं
टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
कविता - हाइकु
कविता-ताँका
- प्रेम
- भीकम सिंह – ताँका – 001
- भीकम सिंह – ताँका – नदी 001
- भीकम सिंह – ताँका – नदी 002
- भीकम सिंह – ताँका – नव वर्ष
- भीकम सिंह – ताँका – प्रेम 001
- भीकम सिंह – ताँका – प्रेम 002
- भीकम सिंह – ताँका – प्रेम 003
- भीकम सिंह – ताँका – प्रेम 004
- भीकम सिंह – ताँका – प्रेम 005
- भीकम सिंह – ताँका – प्रेम 006
- भीकम सिंह – ताँका – प्रेम 007
- भीकम सिंह – ताँका – प्रेम 008
- भीकम सिंह – ताँका – प्रेम 009
- भीकम सिंह – ताँका – प्रेम 010
- भीकम सिंह – ताँका – प्रेम 011
यात्रा-संस्मरण
शोध निबन्ध
कविता
लघुकथा
कहानी
अनूदित लघुकथा
चोका
कविता - क्षणिका
विडियो
उपलब्ध नहीं
ऑडियो
उपलब्ध नहीं