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सलाह

 

कपिल ने सप्ताह पहले महाविद्यालय में गणित विषय पढ़ाने के लिए ज्वाइन किया है, वह अपने विभागाध्यक्ष से मिलने का इंतज़ार कर रहा है। थोड़ी देर में जिस पुरुष ने कक्ष में प्रवेश किया उसका चेहरा कहीं से भी गणितज्ञ होने का आभास नहीं दे रहा था। वह एक सख़्त और काँइपयाँपन लिए खुदरा चेहरा था। दस-पन्द्रह मिनट के वार्तालाप में कपिल ने समझ लिया कि ये आत्ममुग्ध आदमी है। कपिल सोच रहा था कि इतने रूखे आदमी के साथ काम करना कितना कठिन होगा। सिगरेट की गंध कपिल को असहनीय लगी तो वह उनसे दूर लाॅन के एक कोने में खड़ा हो गया। विभागाध्यक्ष का सख़्त चेहरा और सख़्त हो गया और झपकी लेने लगा। बीच-बीच में कनखियों से देख लेता कि कपिल क्लास में गया या नहीं।

क्लास ख़त्म हुई, विभागाध्यक्ष ने सवाल किया तो कपिल को जवाब देने में हिचकिचाहट महसूस हुई, ऊपर से जातिसूचक कमेंट कपिल को अन्दर तक लहूलुहान कर गया। फिर विभागाध्यक्ष ने जम्हाई ली, मुँह धोकर कंघी की और आदेशात्मक स्वर में कहा, “आज मुझे मंत्री जी के घर कुछ काम है, इसलिए बारह बजे वाली मेरी क्लास में आप चले जाएँ।”

“जी,” कपिल आदेश का पालन करने को तुरंत तैयार तो हो गया, लेकिन शंकित हो गया। उसके सामने महाविद्यालय का पूरा माहौल तैर गया। वह झनझना कर विभागाध्यक्ष की क्लास के लिए खड़ा हुआ।

क्लास ख़त्म हुई तो पीछे से किसी के बोलने की आवाज़ सुनाई दी। डॉ. राज्यवर्धन ने कपिल को इंगित करते हुए कहा, “अगर अपने लिए सुविधाजनक स्थिति बनानी है तो विभागाध्यक्ष के राजनैतिक सम्बन्धों पर कंप्लीमेंटस दीजिए। मैथ का तो ज़िक्र ही मत करिये, बिला वजह अपने विभागाध्यक्ष को चढ़ाए रखिए, तभी सर्वाइव कर पाओगे . . ठीक है . . . मिलते रहना।”

निंदारस वाली सलाह कपिल को रूचिकर लगी और वह निंदारस समिति का नियमित सदस्य बन गया। आज वह कुर्सी खींचकर विभागाध्यक्ष की बग़ल में बैठता है। क्लास अपने आप चलती है।

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