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वो ही जो हमेशा जीत जाते हैं

हिन्दी राइटर्स गिल्ड की 13 फरवरी की गोष्ठी में पंकज शर्मा जी ने कविता पढ़ी जिसके अंत में था कि "बिहारी जी ही जीतते हैं"। तब मुझे यह भूली-बिसरी बात याद आ गई।

बात 2002 की है, हम सेंटडियगो अपनी बेटी दामाद के यहाँ गये हुए थे। उनकी बेटी वसुधा करीब 7 वर्ष की थी। वह मोंस्टरस (Monsters) से बहुत डरती थी। उसे सपने में मोंस्टर बहुत डराते थे। शायद स्कूल में बच्चे मोंस्टर की बहुत बात करते हैं। मोंस्टर अच्छे-बुरे (गुड-बैड) होते हैं। हम वृंदावन से बांके-बिहारी की बड़ी फोटो लाये थे। हमने उसे वसुधा के कमरे में टाँग दिया। हमने वसुधा को समझाया कि जब भी डर लगे तब बिहारीजी से कह देना वो सब मोंस्टरस को मार भगायेंगे। अब वो ऐसा करने लगी, जिससे उसने मोंस्टरस से डरना कम कर दिया।

यहाँ के हिसाब से वो अपने कमरे में अकेले ही खेलती थी। उसके मम्मी-पापा दोनों जॉब करते थे। एक दिन जॉब से जब उसकी मम्मी घर आईं तो वह ऊपर से दौड़ती नीचे आई, मम्मी ने पूछा, "कमरे में क्या कर रही थी?"

उसने कहा, "खेल रही थी।"

मम्मी ने फिर पूछा, "किसके साथ?"

वसुधा ने कहा, "बिहारी जी के साथ।"

मम्मी ने यूँ ही पूछ लिया, "कौन जीता?"

वसुधा ने जबाब दिया, "वो ही जो हमेशा जीत जाते हैं।"

हम सब आवाक् रह गये।

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