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चतुर फुरगुद्दी

मूल कहानी: गालो क्रिस्तालो; चयन एवं पुनर्कथन: इतालो कैल्विनो
अँग्रेज़ी में अनूदित: जॉर्ज मार्टिन (क्रिस्टल रूस्टर); पुस्तक का नाम: इटालियन फ़ोकटेल्स
हिन्दी में अनुवाद: सरोजिनी पाण्डेय

 

प्रिय पाठक गण, आज की लोक कथा में आप पाएँगे कि आज के हमारे जीवन में काग़ज़ पर लिखी बातों का कितना महत्त्व है, साथ ही चोरी-छुपे नियमों को भंग करने वाले लोग भी होते हैं, और बुद्धि बल से अपनी समस्याओं का समाधान पा लेने वाले लोग भी!! सचमुच लोक कथाएँ हमारे दैनिक जीवन का आईना हमें दिखाती हैं, आख़िर ऐसा क्यों ना हो! वे धरती से जुड़े जीवन से जो उपजी होती हैं, न देश की सीमा न काल का बंधन! बचपन के दैनिक जीवन से जुड़े कुछ प्रतिमानों के माध्यम से इस लोक कथा का आनंद लीजिए और एक बार फिर अपने बचपन का समय याद कीजिएः

 

एक समय की बात है, एक मुर्गा अपनी कलंगी लहराता, शान में ऐंठा, इधर-उधर टहल रहा था। घूमते-घामते उसने देखा कि रास्ते में एक काग़ज़ का पन्ना पड़ा है। उसने उसे अपनी सोने के रंग की, अर्द्ध चंद्राकार चोंच से पकड़कर उठाया और पढ़ने लगा:

“सोने का मुर्गा और सोने की मुर्गी
 रानी का बत्तख, महंथिन की बतखी
 ठेंगा मियाँ के ब्याह में सब आना
 छोटी फुरगुद्दी को भूल मत जाना”

यह पढ़ते ही मुर्गा, ठेंगा मियाँ के घर की तरफ़, उनके ब्याह में शामिल होने के लिए चल पड़ा। अभी कुछ ही क़दम चला था कि एक मुर्गी से उसकी भेंट हो गई।

“मुर्गे भैया, किधर जा रहे हो?” 

“मैं ठेंगा मियाँ के ब्याह में जा रहा हूँ।”

“क्या मैं भी साथ चलूँ?” 

“अगर तुम्हारा नाम चिट्ठी में है तो ज़रूर चलो,” मुर्गे ने चिट्ठी खोली और पढ़ा:

“सोने का मुर्गा और सोने की मुर्गी . . .हाँ, हाँ तुम्हारा नाम है! तुम चलो!”

दोनों साथ-साथ चल पड़े। थोड़ी ही दूर गए होंगे कि रास्ते में एक बत्तख मिला, “मुर्गी दीदी, मुर्गा भैया, तुम लोग साथ-साथ कहाँ जा रहे हो?” 

“हम दोनों ठेंगा मियाँ की शादी में जा रहे हैं।”

“क्या मैं भी तुम्हारे साथ चल सकता हूँ?”

“अगर तुम्हारा नाम निमंत्रण पत्र में है, तो ज़रूर!”

मुर्गे ने पत्र खोला और पढ़ना शुरू किया:

“सोने का मुर्गा सोने की मुर्गी
 रानी का बत्तख . . . ये ल्लो तुम्हारा नाम तो है! आओ, तुम भी साथ चलो।”

तीनों चलते रहे, बढ़ते रहे और राह में मिली एक, बतखी, उसने पूछा, “भैया बत्तख, मुर्गी दीदी, भैया मुर्गा, तुम तीनों साथ-साथ कहाँ जा रहे हो?” 

“हम सब ठेंगा मियाँ के ब्याह की दावत खाने जा रहे हैं।” 

बतखी ने पूछा, “क्या मैं भी तुम लोगों के साथ चल सकती हूँ?” 

“ज़रूर चल सकती हो, लेकिन निमंत्रण पत्र में तुम्हारा नाम ज़रूर होना चाहिए, “मुर्गे ने फिर से चिट्ठी निकाली, उसे खोला और पढ़ना शुरू किया:

“सोने का मुर्गा सोने की मुर्गी 
रानी का बत्तख महंथिन की बतखी . . . हाँ, हाँ, तुम्हारा नाम भी तो है! आओ, साथ चलो!”

चारों मित्र चल पड़े ठेंगा मियाँ की शादी की दावत खाने! वे ज़्यादा दूर नहीं गए थे तभी उन्हें मिल गई एक प्यारी नन्ही फुरगुद्दी (finch), वह उड़ती हुई उनके पास आई और बोली, “मुर्गे भैया, मुर्गी दीदी बत्तख दादा, बतखी दीदी, तुम सबके सब कहाँ जा रहे हो?” 

“हम जा रहे हैं ठेंगा मियाँ के ब्याह में,” चारों एक स्वर में बोले। 

“क्या मैं भी तुम सबके साथ चल सकती हूँ?” फुरगुद्दी ने पूछा। 
“अगर तुम्हारा नाम चिट्ठी में होगा, तभी तुम साथ चल सकती हो?” मुर्गा बड़ी गंभीरता से बोला और एक बार फिर चिट्ठी पढ़कर देखने लगा:

“सोने का मुर्गा सोने की मुर्गी
 रानी का बत्तख, महंथिन की बतखी
ठेंगा मियाँ के ब्याह में सब आना
छोटी फुरगुद्दी को मत भूल जाना”

“तुम्हारा नाम भी तो इसमें है प्यारी फुरगुद्दी, तुम भी साथ चलो।”

बस फिर क्या था, उन चारों के साथ फुरगुद्दी भी चल पड़ी ठेंगा मियाँ के ब्याह में। ये पाँचों ख़ुशी-ख़ुशी चले जा रहे थे, तभी क्या देखते हैं कि सामने से एक भेड़िया चला रहा है। उसने जब इन पाँचों को देखा तो मुँह में तो उसके पानी भर आया, फिर भी वह पूछ बैठा, “तुम सब एक साथ मिलकर कहाँ जा रहे हो?” 

मुर्गा सबसे आगे आकर बोला, “हम सब ठेंगा मियाँ की शादी में जा रहे हैं।” 

“क्या मैं भी साथ चल सकता हूँ?” 

“ज़रूर, क्यों नहीं! लेकिन तुम्हारा नाम दावतनामे में होना ज़रूर चाहिए, तभी तुम चल सकोगे,” और एक बार फिर मुर्गे ने चिट्ठी निकाली, खोली और पढ़ी:

“सोने का मुर्गा सोने की मुर्गी 
 रानी का बत्तख, महंथिन की बतखी
 ठेंगा मियाँ के ब्याह में सब आना
छोटी फुरगुद्दी को मत भूल जाना” 

“तुम्हारा नाम तो इस पत्र में नहीं है, तुम नहीं चल सकते हमारे साथ!”

“लेकिन मैं तुम सब के साथ चलना चाहता हूँ।”

सारे पक्षी भेड़िये से डर गए और एक साथ बोले, “ठीक है, तुम भी साथ चलो।” 

अभी यह पूरा दल अधिक दूर नहीं चला था तभी भेड़िया बोला, “मैं भूखा हूँ।”

मुर्गे ने कहा, “दावत में चल रहे हैं, वहीं खाना मिलेगा। हमारे पास कुछ भी खाने को नहीं है।”

“फिर मैं तुम्हें ही खा लूँगा, मैं बहुत भूखा हूँ,” कहते हुए भेड़िए ने मुँह खोला और एक ही निवाले में मुर्गे को पूरा का पूरा खा गया। 

भेड़िया फिर से बोला, “मैं अभी भी भूखा हूँ।”

इस बार मुर्गी ने कहा, “हमारे पास तुम्हें खिलाने के लिए कुछ भी नहीं है।” 

परन्तु भेड़िया कहाँ सुनने वाला था, उसने एक बार फिर मुँह खोला और मुर्गी को निगल गया। यही बात कह-कह कर भेड़िए ने बत्तख और बतखी को भी डकार लिया। अब वहाँ बचे केवल भेड़िया और फुरगुद्दी। 

भेड़िये ने फिर से वही बात कही, “फुरगुद्दी मैं भूखा हूँ!”

“तुम्हीं बताओ मैं तुम्हें खाने को क्या दूंँ?” फुरगुद्दी बोली। 

“तो मैं तुमको ही खा लूँगा,” भेड़िए ने कहा और अपना मुंँह पूरा खोला और फुरगुद्दी की ओर बढ़ा। चिड़िया भेड़िए के सिर पर जा बैठी, भेड़िए ने बहुत कोशिश की परन्तु सिर पर बैठी चिड़िया को नहीं पकड़ पाया। चंचल फुरगुद्दी चिरैया अब भेड़िए को खिझाने लगी। कभी इधर फुर्र, कभी उधर फुर्र, कभी सिर पर फुदकती कभी पीठ पर उछलती। कभी आँखों के आगे फड़फड़ाती, कभी सर्र से दूर भाग जाती। भेड़िया जब थक कर चूर हो गया, तो फुरगुद्दी बोली, “अगर तुम मुझे खाने का लालच छोड़ दो तो मैं तुम्हें भरपेट खाना खिला सकती हूँ।” 

भेड़िया हैरान होते हुए बोला, “कैसे भला?”

फुरगुद्दी बोली, “मैं देख रही हूँ कि दूर से एक किसान औरत अपने पति के लिए खाने की पोटली सिर पर रखकर खेतों की ओर जा रही है। मैं उस के सामने से उड़ूँगी तो वह मुझे ज़रूर पकड़ना चाहेगी, मैं इतनी सुन्दर जो हूँ! मैं उसके आसपास चक्कर लगाते हुए उसे कुछ दूर ले जाऊंँगी, तब तुम सिर से उतार कर नीचे रखी पोटली से खाना खा सकते हो।”

और फिर ऐसा ही हुआ! किसान की पत्नी जब उधर से गुज़री तो सुंदर चिड़िया को देखकर ही ललचा गई। सिर पर की गठरी ज़मीन पर रखी और चिड़िया पकड़ने के लिए लपकी। इधर भूखा भेड़िया खाने की पोटली पर झपटा और पोटली नोचने लगा। किसान स्त्री ने जब भेड़िए को पोटली घसीटते देखा तो चीखने-चिल्लाने लगी, “बचाओ ऽ ऽ, बचाओ ऽ ऽ, भेड़िया ऽ ऽ! भेड़िया ऽ ऽ!”

चीख-पुकार सुनकर पास के खेतों में काम करने वाला हर किसान हंसिआ, खुरपी, डंडा, फावड़ा, जो जिसके हाथ लगा, लेकर दौड़ा चला आया। उन्होंने पीट-पीटकर दुष्ट भेड़िए को मार डाला। जब भेड़िए की खाल निकलने के लिए उसका पेट चीरा गया तो उसमें से:

“सोने का मुर्गा, सोने की मुर्गी, 
 रानी का बत्तख, महंथिन की बतखी”

— सब ज़िन्दा निकाल आए!! क्योंकि भेड़िए ने तो उन्हें पूरा का पूरा निगला था न!!

और वे सब फुरगुद्दी के साथ चल पड़े ठेंगा मियाँ के ब्याह की दावत खाने!!! 

“तुममें से अगर कोई ठेंगा मियाँ के ब्याह की दावत खाने जाए, 
थोड़े से पकवान मेरे लिए भी बाँधकर ले आए।”

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