शरद्ऋतु और महाभारत
आलेख | सांस्कृतिक आलेख सरोजिनी पाण्डेय15 Nov 2021 (अंक: 193, द्वितीय, 2021 में प्रकाशित)
हमारे देश भारत की छ्ह ऋतुओं में शरद ऋतु अत्यंत सुखद और सुहावनी होती है। आश्विनी (क्वार)और कार्तिक मास शरद के अंतर्गत आते हैं। पूर्वजों ने इन दो महीनों को ऐसे उत्सव से सजा दिया है कि पूरी शरद ऋतु अति विशिष्ट बन जाती है। आश्विन मास का पहला पक्ष (कृष्ण पक्ष) जो 'पितृपक्ष' कहलाता है, पूर्वजों को समर्पित है, 'पक्षपितृ'– में पितरों का श्राद्ध, स्मरण, वंदन किया जाता है।
इस मास के शुक्ल पक्ष को देवी–देवताओं के नाम अर्पित किया गया है जो 'नवरात्रि' कहलाता है। इन नौ दिनों में देवी दुर्गा माँ की स्थापना, अर्चना और विसर्जन किया जाता है।
आश्विन की पूर्णमासी 'शरद पूर्णिमा' अथवा 'कोजागरी पूर्णिमा' कहलाती है। विष्णु ने कृष्णावतार रूप में इस दिन ब्रज की गोपिकाओं के संग महारास किया, जो आध्यात्मिक रूप से आत्मा और परमात्मा के मिलन से उत्पन्न परमानंद का संकेतक है।
शरद्ऋतु के दूसरे मास कार्तिक में तो मानो व्रत-त्योहारों का ताँता ही लग जाता है, कर्क चतुर्थी (करवा चौथ), अहोई अष्टमी, धन्वंतरि त्रयोदशी, नरक चतुर्दशी, दीपावली, गोवर्धन पूजा, छठ पूजा, देवोत्थान एकादशी आदि-आदि, इसी कार्तिक मास में मनाए जाते हैं। जिनका अलग-अलग वर्णन करने के लिए ग्रंथ लिखना पड़ेगा।
इस मास का अंत होता है कार्तिकी 'गंगा स्नान’, और ’गुरु नानक जयंती’ के रूप में।
श्री कृष्ण ने अपने कैशौर्य में इस शरद ऋतु को 'महारास' (परमानंद) के लिए चुना तो अपनी प्रौढ़ावस्था में इसी ऋतु को कौरव–पांडव के बीच लड़े गए, महाविनाशक, 'महाभारत' युद्ध के लिए भी चुना। आपको सुनकर विस्मय हो रहा होगा कि मैं श्री कृष्ण का नाम क्यों ले रही हूँ? युद्ध तो चचेरे भाइयों कौरव और पांडवों के बीच हुआ, फिर श्री कृष्ण का नाम?
यह सत्य है कि युद्ध तो कौरव–पांडवों के बीच था, परंतु क्या श्री कृष्ण मध्यस्थ न थे? यदि वे चाहते तो क्या युद्ध को कुछ समय के लिए इधर या उधर नहीं कर सकते थे? उनकी बात तो (संभवतः) दोनों पक्ष मानने को तैयार हो जाते! मेरे विचार से यह समय इसलिए चुना गया होगा क्योंकि इस समय योद्धाओं की शारीरिक क्षमता अपने चरम बिंदु पर होगी। ग्रीष्म काल में योद्धाओं के शिथिल होने की संभावना रहती और शीत में युद्ध पर व्यय अधिक होता! आपका क्या विचार है?
तो इसी सुहावनी शरद ऋतु में, जिसमें श्री कृष्ण ने महारास करके गोपिकाओं को परम आनंद दिया, उसी में इस 'महासमर' का आयोजन भी हुआ।
जब महाभारत का युद्ध आरंभ हुआ उस समय कौरवों के पास ग्यारह और पांडवों के पास सात अक्षौहिणी सेना थी। भीष्म कुरुवंशियों और शिखंडी पांडवों के सेनानायक नियुक्त हुए। अर्जुन शिखंडी की रक्षा के लिए तैनात थे। युद्ध के दसवें दिन शिखंडी और अर्जुन के युद्ध कौशल से भीष्म बाणों से इतने बिंध गए कि युद्ध करने में असमर्थ हो गए और शर-शैया पर स्थित हो गए, जहाँ उन्होंने दो माह से अधिक समय पश्चात, सूर्य के उत्तरायण हो जाने पर, प्राण त्यागे। भीष्म के सेनापतित्व में दो अक्षौहिणी सेना का नाश हुआ बाक़ी बची हुई, नौ अक्षोहिणी सेना के अधिनायक द्रोण बनाए गए। कर्ण और कृपाचार्य उनकी रक्षा में रहे। पांडवों ने भी अब अपना सेनापति धृष्टद्युम्न को बनाया। धृष्टद्युम्न के हृदय में द्रोण से प्रतिशोध लेने की तीव्र ज्वाला थी, क्योंकि द्रोण ने उनके पिता द्रुपद का अपमान किया था। द्रोण की मृत्यु धृष्टद्युम्न के हाथों हुई।
अब कौरवों के पास केवल पाँच अक्षौहिणी सेना बची थी, जिसका नेतृत्व कर्ण को करना था। इस समय पांडवों के पास तीन अक्षौहिणी सेना बच रही थी। दो दिन युद्ध करने के पश्चात कर्ण अर्जुन के हाथों मारा गया। अब कौरवों की बाक़ी बची तीन अक्षौहिणी सेना को लेकर शल्य युद्ध में उतरे।
पांडवों ने अपनी एक अक्षौहिणी सेना का नेतृत्व युधिष्ठिर को देकर युद्ध आरंभ किया। आधा दिन बीतते न बीतते मद्रराज शल्य की मृत्यु युधिष्ठिर के हाथों हो गई। शल्य के मारे जाने के बाद सहदेव ने समस्त उपद्रव के मूल शकुनि का वध कर दिया। अब दुर्योधन का साहस समाप्त हो गया था और वह युद्ध क्षेत्र से पलायन कर गया।
वह रण क्षेत्र के निकट ही द्वैपायन नामक कुंड में छिप कर बैठ गया। भीम ने उसे ललकार कर, उसके साथ गदा युद्ध कर, उसकी जंघा विदीर्ण करके उसे भी यम लोग पहुँचा दिया।
दुर्योधन के युद्ध क्षेत्र छोड़ देने के बाद कृपाचार्य और अश्वत्थामा ने मिलकर रात में नींद में डूबी हुई बची-खुची पांडव सेना को समाप्त कर दिया। पांडवों के समस्त पुत्रों और उनकी सहायता के लिए आए राजाओं को भी मार डाला।
युद्ध की समाप्ति पर कौरव पक्ष में अश्वत्थामा, कृपाचार्य और कृतवर्मा बचे। पांडवों के पक्ष में उनका साथ देने के कारण धृतराष्ट्र का एक पुत्र युयुत्सु, पांडव पाँच भाई, कृष्ण और सात्विक जीवित रहे। इस युद्ध के कारण भारतवर्ष की समस्त उपलब्धियाँ और ज्ञान-
विज्ञान नष्ट हो गया यहाँ तक कि द्वापर युग का अंत भी हो गया और कलिकाल का आरंभ हुआ।
तो ऐसी है या शरद ऋतु!!
अति पावन भी
मनभावन भी,
कौरव कुल केरि नसावनि भी।
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