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करोना काल का साइड इफ़ेक्ट

कोरोना की तालाबंदी में
मैं दीवारों से इतना बतियायी
मेरे प्रश्नों की प्रतिध्वनि ही
मेरे कानों से टकराई, 
 
मिलना-जुलना तो बंद हुआ
घर के भीतर ही रहना है, 
किसलिए सजूँ और बनूँ-ठनूँ
जब मात्र स्वयं को लखना है? 
 
अब मन भी ‘मनमौजी’ ठहरा
वह अजब बात ही सोचेगा
सोचेगा जो उल्टा सीधा
पहले मुझसे ही पूछेगा! 
 
करती हो बालों को काला
चेहरे पर कलई करती हो, 
फिर नए चलन के वस्त्र पहन
तुम किस को धोखा देती हो? 
 
जग में तुम जैसे कितने हैं
कितनों की चिंता जगत करे? 
जो निकले हैं ख़ुद को छलने
वे अपनी चिंता स्वयं करें! 
 
मन की इन बेढब बातों ने
अंतस् मेरा झकझोर दिया
झाँकूँ मैं कुछ अपने भीतर
मुझको कर इतना विवश दिया, 
 
बालों को रँग लेने से ही
क्या मैं कमसिन हो जाऊँगी? 
आएगा जिस क्षण ‘काल’ मेरा
क्या उसे भ्रमित कर पाऊँगी? 
 
कोरोना की महामारी ने
मुझको यह बात बताई है
‘मरने’ की कोई उम्र नहीं
ना जाने कब मेरी बारी है, 
 
बालों को रँगना छोड़ दिया
ख़ुद के संग अब मैं रहती हूंँ
यह चिंता मन की उतर गई
जग को मैं कैसी दिखती हूंँ! 
 
कोरोना की तालाबंदी का
मुझ पर यह ऐसा असर हुआ
मुक्ति मिल गई रसायन से
मुझसे मेरा साक्षात्‌ हुआ!!!! 

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टिप्पणियाँ

पदमावती 2022/07/25 01:13 PM

कितनों की चिंता जगत करे” यही छलावा कि “लोग क्या सोचेंगे “ तो इस पूरे प्रपंच का सूत्रधार है जिसको हम रचते हैं । हम हमेशा दूसरों की नज़रों में ही बने रहना चाहते हैं , अपने लिए तो हमारे पास न समय है न जगह । जब पता चलता है तब तक बहुत देर हो जाती है । सच सुनने की क्या , आईने में सच देखने की हिम्मत नहीं होती । अपनी उम्र हर बार कम से कम एक साल कम बताने पर जो आत्मिक आनंद आता है उसका क्या कहने ….। लेकिन सत्य तो यह है…. कितनों की चिंता जगत करे??? बहुत सुंदर । हार्दिक बधाई और शुभकामनाएँ

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