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वन में वास करत रघुराई

 

वन में वास करत रघुराई ,
लखन ने बन में धूम  मचाई
 
फागुन मास चढ़्यो जब वन में ,
औ बसंत ऋतु छाई,
टेसू,सेमल ,मौलसिरी  तरु 
फूलन सो रहे छाई
“होरी तौ  अब निकट खड़ी है”,
 लछिमन को सुधि आई,
 सीता भौजी रहे न कोरी ,
 देवर ने जुगत लगाई,
 
वन में वास करत रघुराई।
लखन ने बन में धूम मचाई,
 
रंग -रंग के फूल चुनि लए, 
ता सौं रंग निचुराई,
रंगन से कलसी भर लीन्ही, 
गए निकट रघुराई,
भ्रात  राम सौं आयसु माँगी, 
रघुवर मन मुस्काई,
भौजाई सीता रंग दीनी,
रंग कलसी छलकाई,
 
लखन ने बन में धूम मचाई।
वन में वास करत रघुराई,
 
कुछ भौचक रह गई जानकी, 
फिर तुरतहि उठि धाई,
रंग कलसी लछिमन से छीनी,
देवर पर ढरकाई,
अनुज-सिया की यह क्रीड़ा लखि, 
रघुवर हँसत ठठाई,
राम, लखन, सीता की होरी
मैं  किंकिरि कहूँ गाई,
 
होरी परब सबहिं सुभ होवै, 
कृपा करैं रघुराई।।
 
लखन ने बन में धूम मचाई।
बन में बास करत रघुराई।।

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टिप्पणियाँ

डॉ पदमावती 2024/03/16 08:50 AM

वाह! आँखों के सामने श्री राम सिया लक्ष्मण साक्षात प्रकट हो गए और उनकी होली का ,ठिठोली का भी दर्शन करवा दिया मैडम आपने । Beautiful. बहुत बहुत सुंदर । हार्दिक शुभकामनाएँ ।

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