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मंद का आनन्द

एक मधुर-मंद स्वर वंशी का
कानों में जब आ पड़ता है,
कोलाहल से पीड़ित मन को
वह त्वरित शांति से भरता है,
 
तन मन की क्लान्ति दूर करने
इच्छित होती है मंद पवन
पर तेज़ हवा के झोंकों से
भर जाती है मन में उलझन मन,
 
मंथर गति से बहती नदियाँ
पोषण करती हैं वसुधा का
और तीव्र वेग जल प्लावन का
करता विनाश जन औ'धन का
  
थिर तरल -तरंगें सागर की
लख हो जाता मन मुदित-मगन
हु -हा - करती वेगित लहरें
आतंकित करतीं जन-जीवन, 
 
मंद -मंद जठराग्नि से
पोषित होता है मानव तन,
और तीव्र भयंकर दावानल
कर देता क्षार वन्य -जीवन
 
दुर्गा- काली कर अट्टहास
राक्षस को भी डरा पाती हैं,
औ' मंद-स्मिति एक रमणी की 
मन में नित नेह जगाती है
  
इक सहज पका फल डाली का
होता है गंध-स्वाद पूरित,
क्या पके रसायन से फल भी 
करते हैं उतना मन तोषित ?
 
जीवन गतिमान निरंतर है यह
कभी तीव्रतर चलता है,
पर मंथर गति से चलने पर
आनंद परम यह देता है 
 
उत्तेजित करता वेग हमें,
जीवन में यह भी वांछित है
जीवन का रस यदि पाना हो,
मंथर गति ही अपेक्षित है॥

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टिप्पणियाँ

शैली 2021/08/27 02:18 PM

वाह

डॉ पदमावती 2021/08/27 02:07 PM

बहुत सुंदर सरोजिनी जी बहुत सुंदर । बिलकुल सही आकलन । मंद स्मित ,मंद गमन मंद ध्वनि मंद पवन मन मोह ही लेते हैं । तेज की अपनी महिमा है लेकिन जीवन में तोष का हेतु मंथर गति ही है । बहुत सुंदर शब्द संसार रचा है आपने । बहुत बधाई ।

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