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घृतकुमारी बनाम एलोवेरा 

 

मैं जब ग्यारहवीं कक्षा में पढ़ रही थी, तब टाइफायड हो गया। उन दिनों यह मियादी बुख़ार होने पर चिकित्सक खाने-पीने पर अनेक पाबंदियाँ लगा देते थे क्योंकि यह दूषित जल से होने वाली बीमारी है और आंतों में कीटाणुओं के संक्रमण के कारण घाव हो जाते हैं। उन दिनों आजकल की तरह प्रभावी और शक्तिशाली एंटीबायोटिक औषधियाँ भी नहीं थी और मेरा भाग्य भी कुछ ख़राब था कि यह रोग एक बार ठीक होने के कुछ ही दिनों बाद दोबारा भी हो गया, जैसा कि उन दिनों आम बोलचाल में भी कहा जाता था, ‘टाइफाइड रिलैप्स हो गया’। एक तो रोग, ऊपर से खाने-पीने पर कड़ी बंदिश, चना-चबेना तो दूर की बात, दाल-भात जैसे साधारण ‘ठोस भोजन’ पर भी पाबंदी, केवल द्रव रूप में आहार दिया जाता था। 

मियाद पूरी कर ज्वर तो चला गया लेकिन दुर्बलता बहुत आ गई। रोग की चिकित्सा के लिए मेरे अभिभावकों ने एलोपैथी इलाज करवाया था, परन्तु जब ठीक हो गई तो शरीर की शुद्धि और रोगप्रतिरोधी क्षमता बढ़ाने के लिए एक वैद्य जी से परामर्श लिया गया। उन्होंने मुझे दो माह तक दिन में दो बार ‘कुमार्यासव’ पीने का परामर्श दिया। जब औषधि का नाम कुमार्यासव पढ़ा तो मैंने अनुमान लगाया कि संभवत: यह ‘किशोरी लड़कियों’ के लिए विशिष्ट औषधि है जैसे आजकल पीडियाट्रिक और जिरियाट्रिक औषधि और डॉक्टर अलग-अलग होते हैं न, ठीक उसी तरह। लेकिन सही अर्थ तो तब पता चला जब मेरी माँ ने घृतकुमारी का नाम औषधि में प्रयुक्त जड़ी-बूटियों के नाम में देखा। मेरे नाना जी और माँ के चाचा जी वैद्य थे, अतः आयुर्वेद में प्रयोग होने वाली, जड़ी-बूटियों और वनस्पतियों के बारे में मेरी माँ की जानकारी बहुत अच्छी थी। उन्होंने बताया कि ‘कुमारी’ शब्द किशोरी कन्या के लिए नहीं बल्कि ‘घृतकुमारी’ नामक वनस्पति के लिए प्रयुक्त है! एक दो माह की सेवा-सावधानी के बाद मैं स्वस्थ हो गई और दुर्बलता भी दूर हो गई। 

मैंने विज्ञान विषय पढ़ाई के लिए चुना था और उसमें भी वनस्पति विज्ञान। जब शिक्षा कुछ आगे बढ़ी तो घृतकुमारी का वानस्पतिक नाम ‘एलोवेरा’ और वानस्पतिक परिवार—एस्फोडिलेसी, उसका जीवन चक्र, आंतरिक संरचना, आर्थिक महत्त्व आदि के बारे में कई जानकारियाँ प्राप्त हुईं। 

समय की गति के साथ जीवन चलता रहा, कई दशक बीत गए। विवाह हुआ, बच्चे हुए। विद्यालय की पढ़ाई दिमाग़ के किसी अँधेरे कोने में बंद होती चली गई, मैं गृह स्वामिनी होकर पूर्ण संतुष्ट थी। 

सहसा भारत के आयुर्वेद, व्यापार-विज्ञापन जगत के आकाश में श्री बाबा रामदेव नामक एक जाज्वल्यमान नक्षत्र उदित हुआ और भारतीय जीवन पद्धति, भारतीय चिकित्सा पद्धति, भारतीय पद्धति से बने सौंदर्य प्रसाधन का प्रचार-प्रसार जन-जन में होने लगा। कभी कुमार्यासव के रूप में घूँट-घूँट पिया गया ‘एलोवेरा’ महौषध के रूप में स्थापित कर दिया गया। एलोवेरा का जूस पीकर आप स्वस्थ रहें, एलोवेरा की क्रीम लगाकर आप सुंदर हों, एलोवेरा के शैंपू से बाल कोमल चमकदार बनते हैं, आपका आरोग्य बढ़े, आप चिरजीवी हो आदि आदि आदि। 

अब मुझे भी अचानक वनस्पति विज्ञान की कक्षा में पढ़ी गयी एलोवेरा की जानकारी मन ही मन दोहरानी पड़ी और याद आया कि यह पौधा बहुत कम देखभाल माँगता है, कठिन से कठिन परिस्थिति में पनप सकता है। 

तो फ़्लैट में रहने वाली मैं भी, एक गमले में इसे उगाने के लिए तैयार हो गई। इस समय कोई डॉक्टर का नुस्ख़ा तो पूरा करना नहीं था जो एलोवेरा के उत्पाद बाज़ार से ख़रीद कर लाती और स्वास्थ्य-सौन्दर्य की रक्षा करती, फिर वनस्पति जगत के मेरे प्रेम को भी एक नया आयाम मिलने की सम्भावना थी। बच्चे बड़े हो गए थे अतः समय भी भरपूर रहता था मेरे पास। सोचा कि एलोवेरा उगाकर अपने लिए प्रसाधन मैं स्वयं ही तैयार करूँगी। स्वभाव से सौंदर्य प्रसाधनों में मेरी विशेष रुचि नहीं है, प्राकृतिक जीवन मुझे अधिक पसंद है, परन्तु उम्र अपना असर दिख रही थी और इस संसार में भला बूढ़ा दिखना किसको पसंद है! और यदि मैं प्राकृतिक वनस्पति स्वयं उगाकर उसका प्रसाधन इस्तेमाल करूँगी तो प्राकृतिक जीवन की मेरी इच्छा भी पूरी हो जाएगी। एलोवेरा उगाने में, मेरा ऐसा सोचना भी उत्प्रेरक था, इससे एक तीर से दो नहीं बल्कि कई शिकार हो रहे थे। बस फिर क्या था विचार का कार्यान्वयन आरंभ कर दिया!! 

एक बड़े गमले में एक पौधशाला से छोटा सा एलोवेरा का पौधा लाकर लगा दिया। बिना किसी सेवा-टहल के ही यह पौधा, धीरे-धीरे समय के साथ बढ़ता रहा और लगभग दो वर्ष में इतना बड़ा हो गया कि काँटेदार तलवार जैसी उसकी पत्तियाँ गमले के बाहर लटक-लटक कर मुझे बुलाने लगीं। 

बाबा रामदेव के योग के कार्यक्रम नियम से देखने लगी थी और एक दिन मुझे मन माँगी मुराद मिली, जब उन्होंने कहा कि यदि आपके पास एलोवेरा का पौधा है, तो सुबह-सवेरे आप एक इंच-सवा इंच का टुकड़ा रोज़ चबा लें तो आपको जूस पीने का लाभ मिल सकता है। 

बस फिर क्या था अगले ही दिन मैंने सुबह एक पत्ती चाकू से काटी और उसका टुकड़ा काट कर मुँह में रख लिया। मुँह अजीब लिबलिबे, बेस्वाद पदार्थ से भर गया, बड़ी कठिनाई से पानी के साथ उसे भीतर घूँटा और फिर सोचा कि ऐसी क्रिया नित्य तो कर पाना कठिन है, जूस बनाकर पीना ही ठीक रहेगा। 

दिन में गृहस्थी के काम से निबट कर आठ-दस एलोवेरा की पत्तियाँ तोड़ लाई। बड़ी सावधानी से उनके काँटे तेज़ चाकू से काट, छिलका उतार, चम्मच से उसका जेल अलग किया। इस जेल को देखकर घृतकुमारी नाम में ‘घृत’ शब्द की सार्थकता समझ में आई, गाढ़े घी की तरह पारभासक जेली कटोरे में मिल गई। लेकिन कठिनाई यह थी की इस पदार्थ की सांद्रता देखकर लगा इसको गले से उतरना इतना आसान न था। सो मिक्सी में डालकर दो मिनट तक इसको ख़ूब घुमाया और बिजली की तेज़ी देखिए, सारी घी नुमा जेली गाढ़े जूस में परिवर्तित हो गयी। 

इस हल्के हरे-पीले, पारभासक, ‘होममेड एलोवेरा जूस’ को जब मैंने एक छोटी बोतल में रखा तो, मेरी ख़ुशी सातवें आसमान पर थी! किसी बड़े लक्ष्य को लेकर किया गया प्रयास यदि सफल हो जाए, तो जो आनंद आता है वह ‘गूँगे का गुड़’ होता है! चंद्रयान प्रक्षेपित करके वैज्ञानिकों की ख़ुशी का अनुमान मैं सहज ही लगा सकती हूँ। 

अगले दिन से एलोवेरा जूस पीना शुरू कर दिया। एक-दो दिन पीने के बाद ऐसा लगा मानो मैं सचमुच बहुत अधिक स्वस्थ और स्फूर्तिमान हो गई हूँ, मेरा बनाया टॉनिक, ऑर्गेनिक, शुद्ध, प्रिजर्वेटिव रहित जो था! 

अब तो मेरी रोग प्रतिरोधी क्षमता भी बढ़ रही थी, अतः स्वास्थ्य के नियमों में थोड़ी ढील दी जा सकती थी, बस फिर क्या था, अगले ही दिन मैंने गोलगप्पे खाने का कार्यक्रम बना डाला। बाज़ार से गोलगप्पे आए, आलू, मटर तैयार किया। साथ ही चटपटा पानी, धनिया-पुदीना, नींबू का रस, तीखी हरी मिर्च, इमली का पानी, नमक, काली मिर्च। बिना किसी सामग्री की कोई कटौती किए, बेहद चटपटा पानी तैयार कर लिया। अब भला गोलगप्पे जैसा स्वर्गीय आनंद देने वाले व्यंजन से कोई कैसे इंकार करता! मेरे पति ने भी भरपूर सहयोग दिया और हम ने जी भर कर, परम तृप्ति तक गोलगप्पे खाए। ‘एलोवेरा जूस’ के कवच से आवेष्ठित हम अपने स्वास्थ्य को परम सुरक्षित पा रहे थे। गोलगप्पे हमें भा भी रहे थे लालच में हम गोलगप्पे थोड़ा ज़्यादा खा भी रहे थे। बहुत कोशिश करने पर भी सारे गोलगप्पे हम नहीं ख़त्म कर पाए, कुछ अधिक ही आ गए जो थे! बची चीज़ों को फ़्रिज में रखना था। सब बची सामग्री तो फ़्रिज में रखी गई, बचा हुआ गोलगप्पे का पानी एक शीशी में डालकर फ़्रिज के हवाले किया गया कि इसे बाद में फिर स्वाद लेकर खाएँगे। 

अगले दिन जब नहाने जाने लगी तो सोचा-चलो आज एलोवेरा का जूस चेहरे और बालों पर भी लगा लेती हूँ, शायद उम्र के निशान थोड़े कम होने शुरू हो जाएँ। आंतरिक स्वास्थ्य तो नित्य जूस सेवन से मिल ही रहा है मुझे, एलोवेरा से क्यों ना सौंदर्य भी निखार लूँ, कुछ भी हो दो वर्ष से मैं इस दिन की प्रतीक्षा कर रही थी कि अपना स्वयं का एलोवेरा उगाऊँगी और उसे ही प्रयोग करूँगी। आख़िर टेलीविज़न पर ऐसा ही तो प्रचार किया जाता है, इसके प्रयोग से दाग-धब्बे, झाइयाँ-झुर्रियाँ, सूखापन सभी समाप्त हो जाते हैं और त्वचा में नया कसवा आकर यौवन वापस आ जाता है। 

एक कटोरी में हल्दी पाउडर, बेसन लेकर उसमें ‘एलोवेरा’ का रस मिलाया और ग़ुसलखा़ने की राह ली। स्नान आरम्भ करने से पहले माथे, गालों, आँखों और गले पर अच्छी तरह से यह लेप लगाया और हल्की-हल्की मालिश शुरू की। लेकिन यह क्या? जहाँ-जहाँ एलोवेरा ‌का रस लगा था, वहाँ-वहाँ हल्की रगड़ और बिना रगड़ के भी तेज़ जलन हो रही थी। आँखों से पानी बह रहा था और जलन के कारण उन्हें खोलना मुश्किल था। समझ में नहीं आ रहा था कि जो रस पीने में फीका और स्वादहीन था, जिसे निकालने के समय कोई तकलीफ़ नहीं हुई वह त्वचा पर लगते ही इतना घातक कैसे हो गया? क्या बाज़ार से ख़रीदे गए एलोवेरा के उत्पादों पर यह सावधानी लिखी गई होगी। कि कु़्छ लोगों की त्वचा पर यह घातक प्रभाव डाल सकता है! क्या मेरी त्वचा को एलोवेरा की एलर्जी है? आदि आदि, बातें सोच-सोच कर दिमाग़ एकदम भन्ना गया। जल्दी-जल्दी किसी तरह ढेरों पानी शरीर, सिर और आँखों पर डाल, सारा शरीर साफ़ किया आँखों पर पानी के छींटे डालें और उल्टे–सीधे कपड़े पहन कर बाहर आ गई। शीशे में चेहरा देखा तो लाली लिए हुए, तनिक सूज भी गया था। चेहरे की हालत देखकर एलोवेरा फिर कभी न प्रयोग करने का निश्चय कर फ़्रिज की तरफ़ दौड़ी और जब रस की शीशी देखी तो मैं हैरान रह गई वह तो ज्यों की त्यों बिना हिले अपने स्थान पर ही रखी थी, और . . . जानते हैं हुआ क्या था . . .? मेरे पति ने फ़्रिज में एलोवेरा के जूस की शीशी के बग़ल में, वैसी ही दूसरी शीशी में कल के बचे गोलगप्पे का पानी रख दिया था, बेचारे मेरी सहायता जो कर रहे थे! यह उसी का कमाल था! मैंने उत्साह और जल्दबाज़ी में एलोवेरा के रस की शीशी के स्थान पर दूसरी बोतल उठा ली थी, देखने में दोनों लगभग एक जैसी जो थीं . . .! 

स्थायी रूप से तो गालों पर गुलाबी रंगत नहीं आई परन्तु एक-डेढ़ घंटे के लिए तो चेहरा फूला-फूला, गुलाबी रंगत का हो ही गया, शायद थोड़ा जवान भी! ‘एलोवेरा के जूस’ से कुछ घंटों के लिए यौवन चेहरे पर तो लौट ही आया था। 

वाह, वाह मेरा ‘एलोवेरा’, जवाब नहीं तेरा। 

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