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गंध-बूटी

 

मूल कहानी: इल् वासो डि मैजिओराना; चयन एवं पुनर्कथन: इतालो कैल्विनो
अंग्रेज़ी में अनूदित: जॉर्ज मार्टिन (द पॉट ऑफ़ मर्ज़ोरम); पुस्तक का नाम: इटालियन फ़ोकटेल्स
हिन्दी में अनुवाद: सरोजिनी पाण्डेय

 

प्रिय पाठक, आज की लोक कथा में न तो राजा है, न रानी, अगर है तो एक युवक और युवती की आपसी नोक-झोंक! थोड़ा बहुत पुट पुरुष की अहम् मानसिकता का भी है। यह मानसिकता आज की नहीं शायद हज़ारों वर्ष पुरानी है, इसके बारे में विचार करने के लिए मनोवैज्ञानिक और समाजशास्त्री बहुत हैं। यहाँ तो बस आप लोक-कथा का आनंद लें:

किसी समय की बात है, एक वैद्यराज थे जो दैवयोग से विधुर थे। उनकी एक बेटी थी जो दुर्भाग्य से बचपन से ही मातृहीना हो गई थी। वैद्य जी ने बेटी का लालन-पालन बड़ी लगन से किया और उसमें वह हर योग्यता विकसित करने की कोशिश की जो संसार में आदर से जीने के लिए आवश्यक होती। नाम रखा था ‘फूलमती’। फूलमती किशोरी हुई तो उसको शिल्प कार्य में भी दक्ष बनाने के लिए वैद्य जी ने एक गृहशिल्प की शिक्षिका के पास भेज दिया। इस शिक्षिका की छत पर बहुत सारे फूलों के पौधे और अन्य वनस्पतियाँ लगी हुई थीं। पढ़ाई करने के बाद फूलमती छत के पौधों को पानी देने के लिए जाती थी। वैद्य की बेटी थी, तो उसे जड़ी-बूटियों में स्वाभाविक रुचि थी, इसलिए यह काम भी वह बड़े उत्साह से करती थी। 

शिक्षिका के घर के सामने, सड़क के उस पार एक छज्जा दीखता था, जो किसी रईस का था। जब फूलमती पौधों को पानी देने जाती तो उसे एक नौजवान, रईसज़ादा रोज़ देखता था। 

एक दिन फूलमती को छत पर देखकर नौजवान अपने छज्जे से ज़ोर से बोल उठा: 

“फूलमती, ओ फूलमती, 
 तेरी गंध-बूटी में कितनी पत्ती?” 

फूलमती भी तेज़तर्रार किशोरी थी, तत्क्षण उत्तर दिया: 

“ओ रईसज़ादे अपने बाप के दुलारे, 
बोल तो आकाश में कितने हैं तारे?” 

रईसज़ादा नवयुवक बोला: 

“मुश्किल है बहुत तारों को गिन पाना।”

इस पर फूलमती का जवाब था: 

“मेरे पौधों पर न तुम नज़र गड़ाना।”

फूलमती की हाज़िर-जवाबी सुन कर रईसज़ादे ने उसे छकाने की सोची। अगले दिन वह वेश बदल कर, सिर पर मछलियों की टोकरी ले, गुरु के घर के सामने मछली बेचने की आवाज़ें लगाने लगा। गुरु ने फूलमती को मछली ख़रीदने के लिए बाहर भेज दिया। उसने मछलियाँ देखीं, फिर एक मछली को पसंद कर उसका दाम पूछा, युवक ने तो उसका दाम बाज़ार के दाम से कई गुना अधिक माँगा। यह बात, फूलमती अपने, गुरु को बताने जब लौटने लगी तो युवक ने कहा, “यदि तुम एक चुंबन मुझे दे दो तो तुम्हारी गुरुजी के लिए मैं यह मछली मुफ़्त में दे दूँगा!” फूलमती ने कुछ पल विचार किया और झटपट एक छोटा सा चुंबन मछली वाले के गाल पर दे दिया। बदले में उसे अपनी गुरुजी के लिए मछली बे-मोल मिल गई। 

शाम को जब वह अपने प्यारे पौधों की देखभाल करने के लिए छत पर पहुँची तो सामने के छज्जे से फिर आवाज़ आई: 

“फूलमती ओ फूलमती 
तेरी गंध-बूटी में कितनी पत्ती?” 

फूलमती ने भी अपनी बात दोहराई: 

“ओ रईसजा़दे, अपने बाप के दुलारे
बता तो भला गगन में कितने हैं तारे?” 

युवक ने कहा: 

“मुश्किल बहुत है तारों को गिन पाना।”

फूलमती बोली: 

“मेरी बूटी पर मत नज़र टिकाना!”

युवक इस बार और आगे बोला:

“तूने तो सिर्फ़ छोटी-सी मछली के लिए, 
अपने होंठों से मेरे गाल छू लिए!”

यह सुनते ही फूलमती समझ गई कि युवक ने छल से उसे मूर्ख बनाया है। वह भी उससे बदला लेने का उपाय सोचने लगी। उसने अपने गुरु से सीख कर, एक बहुत सुंदर, नगों से जड़ी टोपी बनाई। फिर एक दिन लड़के का वेश बनाकर, जड़ाऊ टोपी पहन, टट्टू पर सवार हो युवक के घर के सामने से निकल-निकल कर चक्कर लगाने लगी‌। 

युवक ने अपने छज्जे से इस नवयुवक को देखा और उसकी जड़ाऊ-सुन्दर टोपी देखते ही ललचा उठा। वह झट से नीचे आकर बोला, “सजीले सवार, तुम्हारी टोपी तो बड़ी सुंदर है! तुम इसको मुझे बेच सकते हो? भला बोलो तो, क्या दाम लोगे?” 

फूलमती ने पुरुष की आवाज़ बना कर कहा, “अगर तुम मेरे टट्टू की पूँछ चूम लो, तो टोपी तुम्हें मैं यूँ ही दे दूँगा!”

रईसज़ादा तो उस टोपी पर फ़िदा था, आसपास नज़र दौड़ा कर देखा कि कोई उसे देख तो नहीं रहा है और फिर झट से टट्टू की दुम चूम ली। फूलमती ने भी टोपी सिर से उतार कर रईसज़ादे को दे दी। 

अगली शाम फिर छत और छज्जे के आर-पार दोनों के सवाल जवाब चलने लगे:

“फूलमती ओ फूलमती
तेरी गंध-बूटी में कितनी पत्ती?” 

“ओ रईसज़ादे अपने बाप के दुलारे, 
“बता तो भला गगन में कितने हैं तारे?” 

“मुश्किल बहुत है तारों को गिन पाना“

“मेरी गंध-बूटी पर नज़र न टिकाना”

“तूने तो सिर्फ़ एक मछली के लिए
अपने होंठों से मेरे गाल छू लिए!”

“अदनी-सी टोपी को चाहते थे तुम, 
उसके लिए चूमी मेरे टट्टू की दुम!”

यह सुनकर तो रईसज़ादे के दिल में मानो ख़ंजर ही उतर गया, एक लड़की मुझको हरा रही है! बेवुक़ूफ़ बना रही है! 

अगले दिन ही वह शिक्षिका के घर आया और चिरौरी-विनती करके सीढ़ियों के नीचे छुपने की इजाज़त माँग ली। जब फूलमती सीढ़ियों से नीचे उतरने लगी तो छुपे हुए नवयुवक ने उसका लहँगा थोड़ी देर को पकड़ लिया। फूलमती डरकर चिंहुक गई और ज़ोर से चिल्लाई: 

“तो मेरी टीचर हो गया पंगा, 
सीढ़ियों ने पकड़ लिया है, मेरा लहँगा!” 

कुछ क्षण के बाद ही युवक ने कपड़ा छोड़ दिया। फूलमती डर से काँपती अपने घर चली गई। 

अगले दिन छत के पौधों के बीच टहलते हुए फूलमती को फिर युवक का सवाल सुनाई दिया, और वह भी जवाब देने को‌‌ तैयार हो गई। 

युवक बोला:

“फूलमती ओ फूलमती
तेरी गंधबूटी में कितनी पत्ती?” 

“ओ रईसज़ादे अपने बाप के दुलारे
बता तो भला आकाश में कितने तारे?” 

“मुश्किल बहुत तारों को गिन पाना” 

“मेरी गंध-बूटी पर नज़र न टिकाना!”

“तूने तो बस एक मछली के लिए 
अपने होंठों से मेरे गाल छू लिए!”

“अदनी-सी टोपी को चाहते थे तुम, 
उसके लिए चूमी मेरे टट्टू की दुम“

“ओ मेरी टीचर हो गया पंगा, 
सीढ़ियों ने पकड़ लिया है मेरा लहँगा!”

यह सुनते ही पहले तो फूलमती का कलेजा धक् से रह गया, रईसज़ादे ने फिर उसे छकाया था। वह अब फिर बदला लेने को बेचैन हो गई। एक दिन उसने मौक़ा देखकर नवयुवक के नौकर को कुछ पैसे देकर पटा लिया। रात में अपने शरीर को सिर से पैर तक सफ़ेद चादर से ढक कर, एक हाथ में जलती मोमबत्ती और दूसरे हाथ में एक खुली बही लेकर रईसज़ादे के कमरे तक पहुँच गई। उस समय वह आधी नींद में अपने बिस्तर में था। आहट से युवक की नींद टूटी तो अपने सामने साक्षात्‌ मौत को देखकर व काँप उठा, गिड़गिड़ते हुए बोला: 

“यमदूत जी, मैंने अभी जीवन नहीं जिया, 
सामने के घर में है, एक खूसट बुढ़िया!” 

 यह सुनकर फूलमती ने मोमबत्ती बुझा दी और तेज़ी से वहाँ से भाग कर निकल गई। 

अगली शाम को फिर युवक और युवती के बीच, छत और छज्जे से सवाल-जवाब शुरू हो गए:

“फूलमती ओ फूलमती 
तेरी गंध-बूटी में कितनी पत्ती?” 

“ओ रईस ज़ादे अपने बाप के दुलारे, 
 बता तो भला गगन में कितने हैं तारे?” 

“मुश्किल बहुत है तारों को गिन पाना!”

“मेरी गंध बूटी पर कभी नज़र न टिकाना!”

“तूने तो बस एक मछली के लिए, 
अपने होंठों से मेरे होंठों गाल छू लिए!”

“अदनी सी टोपी को चाहते थे तुम, 
उसके लिए चूमी मेरे टट्टू की दुम!”

“ओ मेरी टीचर हो गया पंगा! 
सीढ़ियों ने पकड़ लिया हाय, मेरा लहंगा!”

“यमदूत जी, मैंने जीवन नहीं जिया, 
सामने के घर में है, खूसट बुढ़िया!

इस आख़िरी बंद को सुनकर रईसज़ादे युवक ने सोचा कि बस, अब बहुत हो गया! अब यह झंझट हमेशा के लिए ख़त्म कर देना चाहिए! 

वह सीधे फूलमती के पिता, वैद्य जी, के पास पहुँच गया और फूलमती से विवाह करने की इच्छा जतायी। वैद्य जी तो बहुत ख़ुश हो गए। 

बड़े रईस के घर से रिश्ता जो आया था! 

झटपट सारी बातें तय हो गईं और शादी की तिथि भी निश्चित हो गई। अब जैसे-जैसे शादी की तिथि निकट आ रही थी, फूलमती की चिंता और घबराहट बढ़ती जा रही थी। उसे यक़ीन था कि उसका दूल्हा उन सारी शरारतों का बदला लेगा जो उसके साथ की गई थीं; धनवान का नकचढ़ा बेटा जो था! 

उसने ख़ूब सारा आटा गूंध कर, एकदम अपने आकार-प्रकार की, एक बड़ी गुड़िया बना डाली, जिसके दिल की जगह मीठे शरबत से भरी एक थैली रख दी। इस गुड़िया को अपने‌ ही कपड़ों से सजा कर, उसे अपने साथ ही, ढक-छुपाकर ससुराल ले गई। 

शादी के बाद सुहागरात को उसने अपने पलंग पर वही आटे की गुड़िया रख दी और ख़ुद पलंग के नीचे लेट गई। कुछ समय बाद दूल्हा भी कमरे में आया और बोला, “तो अब पहली बार हम दोनों एकांत में हैं! अब मौक़ा मिला है तुमसे बदला लेने का! कितना सताया है तुमने मुझको! मुझ जैसे रईस की इतनी बेइज़्ज़ती!” 

घमंड में चूर युवक ने अपनी कमर से कटारी निकाली, और पलंग पर सोई, आटे की पुतली को, फूलमती समझकर, उसकी छाती में घोंप दी। दिल की जगह रखी गई मीठे शरबत की थैली फट गई और उसमें भरा मीठा शीरा उछल कर दूल्हे के होंठों तक भी पहुँच गया, शक्कर का स्वाद पाकर युवक बिलख उठा, ‌”यह मैंने क्या कर डाला? जिस फूलमती का ख़ून इतना मीठा है, उसका स्वभाव कितना मीठा रहा होगा, उसके साथ कितनी मीठी ज़िन्दगी गुज़र सकती थी!” ‌यह कहकर वह अपनी छाती में भी कटारी घोंपने को हुआ। अब तक फूलमती छुपी जगह से निकलकर बाहर आ गई थी। उसने लपक कर युवक का हाथ पकड़ लिया और बोली, “रुक जाओ, पूरी ज़िन्दगी तुम्हारे साथ बिताने को फूलमती ज़िन्दा है!” 

दोनों एक दूसरों की बाँहों में खो गए और जब तक जिए साथ-साथ, हँसी-ख़ुशी से जिए!

“छोटी है ज़िन्दगी
 हँसकर बिताओ 
 ना किसी को छेड़ो 
 ना किसी को सताओ!”

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