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तीन अनाथ

 

मूल कहानी: आई ट्रे ऑर्फनी; चयन एवं पुनर्कथन: इतालो कैल्विनो
अंग्रेज़ी में अनूदित: जॉर्ज मार्टिन (द थ्री ऑर्फन्स); पुस्तक का नाम: इटालियन फ़ोकटेल्स; 
हिन्दी में अनुवाद: ‘तीन अनाथ’ सरोजिनी पाण्डेय

प्रिय पाठक, जिस पुस्तक ‘इटालियन फोक टेल्स’ की कहानियों का अनुवाद करके आपके मनोरंजन के लिए शृंखला के रूप प्रस्तुत कर रही हूँ, उस में कई कहानियाँ ईसाई धर्म से संबंधित हैं। मेरा प्रयास रहता है कि इन लोक कथाओं में धार्मिकता का पुट न आने दूँ, क्योंकि लोक कथाएँ समान्यत: साधारण मानव के जीवन और उसकी मान्यताओं पर ही आधारित होती हैं। परन्तु आज की कथा में ईसा मसीह और ईसाइयत में ‘नरक’ आदि की जो कल्पना की गई है उसकी झलक स्पष्ट रूप से दिखाई पड़ेगी। आशा है इसे आप सहजता से स्वीकार करेंगे। इससे आपको यह भी लगेगा कि सभी धर्मों में आज्ञाकारिता, आत्म-नियंत्रण, सदाचार पूर्ण जीवन की बात समान है। लोक कथा का आनंद लें:

 

किसी समय की बात है, तीन बेटों का पिता इतना बीमार हुआ कि स्वर्ग सिधार गया। अब तीन बेटे तीन ‘अनाथ’ हो गए। 

एक दिन सबसे बड़े लड़के ने कहा, “भाइयो, मैं घर छोड़कर आप अपना भाग्य आज़माने जा रहा हूँ!” वह घर से निकल पड़ा और शहर में आया। वहाँ वह गलियों में चिल्लाने लगा, “जो मुझको दास बनाएगा, मेरा स्वामी हो जाएगा!”

एक रईस सेठ ने अपने घर के छज्जे से उसकी आवाज़ सुनी और उससे बोला, “अगर तुम मेरी सभी शर्तें मान लोगे तो मैं तुम्हें अपना सहायक बना लूँगा!”

“ठीक है, आप अपनी शर्तों सुनाइए।”

“सबसे पहले तो मुझे आज्ञाकारिता चाहिए।” 

“आप जैसा कहेंगे मैं सदा वैसा ही करूँगा!” 

अगली सुबह सेठ ने सेवक को बुलाया और कहा, “यह चिट्ठी लो, इसे लेकर इस घोड़े पर सवार हो जाओ, घोड़े की रास कभी मत छूना क्योंकि अगर तुम ऐसा करोगे तो घोड़ा वापस चला आएगा। तुमको बस घोड़े को कुदाना है क्योंकि उसको अपना रास्ता पता है। कि तुम्हें पत्र ले जाकर कहाँ देना है यह घोड़े को मालूम है।”

लड़का घोड़े पर सवार हुआ और चला गया। वह घोड़े को एड़ लगाता चला जा रहा था। काफ़ी दूर निकल आने पर उनके सामने एक खाई आगयी। 

“मैं ज़रूर इस खाई में गिर पड़ूँगा,” लड़के ने यह सोचकर घोड़े की रास खींच दी ‌घोड़ा पीछे मुड़ा और थोड़ी ही देर में सेठ की हवेली तक आ पहुँचा।

“अच्छा, तो तुमने मेरी बात नहीं मानी। तुमको मैं बरख़ास्त करता हूँ। ख़ज़ाने में से जितनी इच्छा हो, उतना धन ले लो और बाहर निकल जाओ।”

अनाथ लड़के ने अपनी जेब में जितना धन भर सकता था भरा और घर से बाहर निकाला। थोड़ी ही देर बाद वह नरक के अंधे कुएँ में गिर गया। 

जब बड़ा भाई वापस न लौटा तो मँझले लड़के ने घर छोड़ने का निश्चय किया। वह भी उसी रास्ते चला, उसी शहर में आया और वह भी वही चिल्लाया, “जो मुझको दास बनाएगा मेरा स्वामी हो जाएगा!”

फिर वही सेठ बाहर आया और उसने लड़के को बुलाया। अपनी शर्त रखी और दूसरे भाई को पत्र लेकर घोड़े पर सवार होकर भेज दिया। यह लड़का भी जब खाई के पास पहुँचा तो उसने डर कर घोड़े की लगाम खींच दी और वापस लौट आया सेठ ने इससे भी वही कहा, “जाओ जितना धन ले सकते हो ले लो और निकल जाओ!”

वह भी अपनी जेब में रुपए भर कर निकल पड़ा। उसके साथ भी वही हुआ जो बड़े भाई के साथ हुआ था। वह भी नरक के अंधे कुएँ में जा पड़ा। 

जब दोनों बड़े भाई घर नहीं लौटे तो छोटे भाई ने भी घर छोड़ दिया। वह भी उसी सड़क पर चला, इसी शहर में आया और वही आवाज़ गलियों में लगायी, “जो मुझको दास बनाएगा, मेरा स्वामी हो जाएगा!”

सेठ फिर बाहर आया इस अनाथ लड़के को भी उसने घर के अंदर बुलाया, “मैं तुम्हें धन, भोजन और जो भी तुम चाहोगे तुम्हें दूँगा। बस शर्त एक है कि तुम्हें हर हाल में मेरी आज्ञा माननी होगी।”अनाथ लड़के ने सारी शर्तें स्वीकार कर लीं। अगले दिन उसे भी एक पत्र दिया गया और घोड़े की रास न छूने का निर्देश भी। यह लड़का भी इस खाई के किनारे जा पहुँचा। खाई की चट्टानें देखकर उसका रोम-रोम काँप गया। उसने ईश्वर को याद किया “प्रभु मेरी रक्षा करो!” आँखें मूँदी और जब उसने आँखें खोली तो वह खाई के पार पहुँच चुका था। 

वह घोड़े को कुदाता चला जा रहा था। चलते-चलते वह एक नदी के किनारे पहुँचा, बाप रे! नदी का तो पाट इतना चौड़ा था मानो समुद्र हो। 

“मैं कर भी क्या सकता हूँ? भाग्य में यदि डूबना है तो डूबँगा ही! हे प्रभु, मेरी सहायता करो!”

उसके ऐसा सोचते ही पानी फट गया और उसने आराम से नदी पार कर ली। वह चलता रहा, चलता रहा। कुछ दूर आगे जाने पर वह ख़ून जैसे लाल रंग के पानी वाले एक झरने के पास पहुँचा। वहाँ का दृश्य देखकर उसके शरीर के रोंगटे खड़े हो गए। वह सोचने लगा, ‘यहाँ से तो मैं बच ही नहीं सकता, मेरी मौत इसी में डूब कर होगी।’

उसने भगवान का नाम लेकर घोड़े को झरने में कुदा दिया। घोड़े के उसमें पैर रखने से पहले ही पानी फट चुका था। लड़का घुड़सवारी करते-करते एक घने जंगल में पहुँच गया, जो इतना घना था कि उसमें कोई चिड़िया भी पर नहीं मार सकती थी। 

‘बस अब मेरे जीवन का अंत आ गया’ लड़के ने सोचा, ‘लेकिन मैं मरूँगा तो यह घोड़ा भी तो मरेगा’ और वह राम-राम जपते हुए जंगल में आगे बढ़ गया! जंगल के भीतर उसने देखा कि एक बूढ़ा आदमी गेहूँ काटने वाली हँसिए से एक पेड़ काट रहा है। लड़के ने पूछा, “बाबा, यह तुम क्या कर रहे हो? क्या तुम्हें लगता है कि इस हँसिए से तुम इस को पेड़ को काट लोगे?” 

“चुप रहो, एक भी शब्द आगे कहा तो मैं तुम्हारा सिर काट दूँगा,” लड़के से बूढ़े ने कहा। अनाथ लड़का आगे बढ़ गया। 

आगे चलते-चलते वह एक ऐसी जगह पहुँचा जहाँ आग की लपटों का बना हुआ एक द्वार था और उसके दोनों और दो शेर रखवाली कर रहे थे। 

“इस द्वार से होकर जाने पर तो मैं आग में झुलस कर मर ही जाऊँगा और साथ ही मरेगा यह घोड़ा भी। हे भगवान, मुझ पर दया करो।” और यहाँ से भी वह आगे निकल गया। 

अब वह ऐसी जगह पहुँचा जहाँ एक स्त्री पूजा कर रही थी। यहाँ पहुँच कर घोड़ा अचानक रुक गया। लड़के को समझ में आया कि यह पत्र जो वह लाया है इसी स्त्री के लिए है। लड़का घोड़े से उतरा, उसने स्त्री को चिट्ठी दी, स्त्री ने चिट्ठी ली, उसे खोला और फिर एक मुट्ठी भस्म उठाकर हवा में उछाल दी। लड़का फिर घोड़े पर सवार हुआ और वापस चल पड़ा। 

जब वह लौटा तो उसने देखा कि उसका मालिक और कोई नहीं स्वयं ईशु थे। वे बोले, “याद रखो वह खाई नर्क का रास्ता है, पानी मेरे मन के आँसू हैं, ख़ून का झरना मेरे पाँव के घावों से बना है, जंगल मेरे सर का काँटों का ताज है। जो आदमी हँसिए से पेड़ को काट रहा था, वह मृत्यु है। लपटों का द्वार नर्क है और उसके पास बैठे हुए दो शेर तुम्हारे भाई हैं। पूजा करने वाली स्त्री मेरी माँ है तुमने मेरी बात पूरी-पूरी मानी है। जितना धन तुम्हें चाहिए वह ले लो और सोने के सिक्कों के ढेर भी तुम्हारे हैं।” अनाथ को कुछ नहीं चाहिए था! लेकिन उसने सोने के सिक्कों के ढेर में से एक सिक्का उठा लिया और यीशु को नमन कर वहाँ से चला गया। घर पहुँच कर उसने उस सिक्के से ख़रीदारी की, लेकिन वह सिक्का उसे हमेशा अपनी जेब में मिलता रहा। सारा जीवन वह सुख और संतोष से जिया। 

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