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प्यारा हरियल

मूल कहानी: इल स\पाप्पागालो; चयन एवं पुनर्कथन: इतालो कैल्विनो
अँग्रेज़ी में अनूदित: जॉर्ज मार्टिन (द पैरट); पुस्तक का नाम: इटालियन फ़ोकटेल्स
हिन्दी में अनुवाद: सरोजिनी पाण्डेय

 

किसी समय एक शहर में एक सौदागर रहता था, जिसके परिवार में एक बेटी के सिवा और कोई न था। जब बेटी सयानी हुई तो उसका आकर्षक रंग-रूप देखकर वहाँ का राजा उसको पाने के लिए चालें चलने लगा। अब बेटी की सुरक्षा की चिंता के कारण सौदागर का व्यापार के लिए बाहर जाना कठिन होने लगा। परन्तु आख़िर ऐसा कब तक चलता? आख़िर एक दिन हिम्मत करके सौदागर ने सौदा लाने के लिए बाहर जाने की तैयारी की। उसने अपनी बेटी को बुलाया और उसे सावधान करते हुए कहा, “प्यारी बेटी मैं व्यापार के सिलसिले में कुछ समय के लिए बाहर जाऊँगा। जब तक मैं वापस न आ जाऊँ तुम घर से बाहर ना निकलना। तुम मुझसे वादा करो कि मेरे लौटने तक तुम घर में ही रहोगी।” 

संयोग कुछ ऐसा था कि जिस दिन सौदागर ने अपने बाहर जाने की बात कही उसी दिन सुबह उसकी बिटिया ने घर के पास के पेड़ पर किसी का पोसा हुआ एक तोता देखा था, जिसने अपनी मीठी बोली और चतुराई भरी बातों से बिटिया का मन मोह लिया था। 

“पिताजी,” बेटी ने कहा, “घर में एकदम अकेले रहने की बात सोच कर ही मेरा दिल बैठा जा रहा है। क्या आप जाने से पहले मुझे एक तोता दिला सकते हैं? जो मेरे साथ रहे और मेरी दिलजोई करता रहे।” 

सौदागर की तो जान ही बसती थी बेटी में, सो वह तुरंत ही चल पड़ा एक तोते की खोज में। जल्दी ही उसे एक बूढ़ा मिल गया जिसने बड़े सस्ते दामों में उसे अपना तोता बेच दिया। सौदागर बेटी के लिए तोता लेकर घर आया और कई अन्य हिदायतें देकर व्यापार के लिए यात्रा पर निकल पड़ा। 

जब राजा को सौदागर के जाने की बात मालूम हुई तो उसने सौदागर की बेटी से मिलने की योजना बनाई। उसने एक वृद्धा को अपने सहायता के लिए चुना और उसके हाथ एक चिट्ठी उस नवयुवती के लिए भेज दी। 

सौदागर की बेटी को तो तोता बहुत भाया ही था, तो पिता के जाने के बाद वह अक़्सर ही उससे बतियाती रहती थी। एक दिन उसने तोते से कहा, “मिट्ठू मुझसे कुछ मीठी-मीठी बातें करो।” 

“आज मैं तुम्हें एक अच्छी-सी कहानी सुनाता हूंँ सुनो: एक बार की बात है, एक राजा था, उसकी एक बेटी थी वह राजा की इकलौती संतान थी। उसका कोई भाई-बहन नहीं था और न ही थे संगी-साथी। उसका दिल बहलाने के लिए राजा ने एक गुड़िया बनवाई, जिसका आकार-प्रकार, नयन-नक़्श, सब कुछ राजकुमारी के जैसे थे। राजकुमारी जहाँ भी जाती वह गुड़िया अपने साथ ले जाती। दोनों इतनी एक जैसी दिखती थीं कि कोई उनमें भेद ना कर पाता था। 

“एक दिन जब राजा जंगल में शिकार खेलने गया तो राजकुमारी भी अपनी गुड़िया को साथ लेकर पिता के साथ चल पड़ी। रास्ते में डाकुओं ने उन पर हमला करके राजा को तो मार डाला और राजकुमारी को उठा ले गए, गुड़िया गाड़ी में ही पड़ी रह गई। राजकुमारी कुछ समय तक तो रोती-बिलखती डाकुओं के पास चलती रही, फिर चुपके से, मौक़ा देख कर उन्हें चकमा देकर भाग निकली। 

“चलते-चलते वह दूसरे शहर में पहुँच गई। वहाँ की रानी को राजकुमारी बहुत पसंद आई और उसने उन्हें अपनी सेवा में रख लिया। कुछ ही समय में वह रानी की सबसे चहेती बन गई, यहाँ तक कि दूसरे सेवक उससे जलने लगे। एक दिन उन सबने मिल कर राजकुमारी से कहा, ’तुम तो रानी को बहुत प्यारी हो, रानी तुम्हें अपनी सारी बातें बताती हैं। उन्होंने यह भी तो बताया ही होगा कि उनका एक बेटा था, जो अब नहीं रहा।’ 

“यह सुनकर सेविका बनी राजकुमारी का दिल भर आया। वह सीधे रानी के पास जाकर बोली, ’महारानी मुझे बहुत दुख है, मुझे आज ही मालूम हुआ कि आप अपना एक बेटा खो चुकी हैं।’ यह सुनना था कि रानी को मूर्छा आ गई। रानी के इस दुख के बारे में किसी को भी कोई बात करने की इजाज़त न थी, जो भी राजकुमार के बारे में बातें करता उसे प्राण दंड मिलता था। परन्तु राजकुमारी तो रानी को परम प्रिय थी, इसलिए उन्होंने उसे प्राण दंड तो नहीं दिया परन्तु कालकोठरी में फिंकवा दिया। 

“क़ैद में राजकुमारी का बुरा हाल होने लगा, उसने खाना-पीना छोड़ दिया और दिन–रात रोती रहती। एक दिन आधी रात में उसे ऐसा लगा मानो किसी ने कोठरी की कुंडी खोली है और सहसा उसने देखा कि पाँच लोग अंदर आए हैं, जिनमें चार तो तांत्रिक थे और चौथा रानी का बेटा राजकुमार था, जो उन तांत्रिकों की क़ैद में था। तांत्रिक उसे आधी रात में हवाख़ोरी के लिए बाहर ले जाया करते थे . . . ”

उसी समय सौदागर के घर के दरवाज़े पर आहट हुई। कोई नौकर सौदागर की बेटी के लिए पत्र लेकर आया था, तोते की कहानी रुक गई। यह चिट्ठी राजा की ओर से सौदागर की बेटी के लिए आई थी। लेकिन सौदागर की बेटी तो यह जानने को बेचैन थी कि कहानी में आगे क्या हुआ? इसलिए उसने नौकर से कहा, “जब तक पिताजी वापस नहीं आ जाते मैं किसी की चिट्ठी नहीं लूँगी।” 

नौकर चिट्ठी लेकर वापस चला गया। 

तोते ने आगे कहना शुरू किया, “सुबह जब कालकोठरी के चौकीदार ने देखा कि लड़की ने खाना बिल्कुल ही नहीं छुआ है, तो उसने इसकी सूचना रानी को दी। रानी ने लड़की को बुलवाया। उसने रानी को बताया कि उसका बेटा मरा नहीं है, वह तांत्रिकों का बंदी है और आधी रात को वे तांत्रिक उसे घुमाने के लिए ले जाते हैं। रानी ने अगली रात अपने सैनिकों को बर्छी-भालों से लैस होकर कालकोठरी में भेजा। सैनिकों ने तांत्रिकों को मार डाला और राजकुमार को छुड़ा लाए। 

“अब रानी ने राजकुमार का ब्याह उस लड़की से करने की सोची जिसके कारण वह क़ैद छूटा था . . . ”

 तभी द्वार पर फिर दस्तक हुई सौदागर की बेटी से नौकर ज़िद करने लगा कि वह राजा की चिट्ठी पढ़ ले। 

“ठीक है, अब कहानी पूरी हो गई है, मैं चिट्ठी पढ़ लेती हूंँ . . . ” सौदागर पुत्री बोली। 

“लेकिन कहानी तो पूरी नहीं हुई तुम आगे तो सुनो . . . ” हरियल तोता जल्दी से बोल पड़ा, “लड़की तो राजा के बेटे से शादी के लिए तैयार ही नहीं थी। उसने अशर्फ़ियों से भरी थैली इनाम में ले ली और पुरुषों की पोशाक पहनकर अगले शहर की ओर चल पड़ी। 
 
“इस शहर के राजा का भी बेटा बीमार था। सारे वैद्य हकीम इलाज करके हार गए थे, बीमारी थी कि ठीक होने का नाम की नहीं ले रही थी। आधी रात से भोर होने तक वह ऐसा व्यवहार करता मानो किसी भूत-प्रेत का साया उस पर हो। इस जानकारी को पाकर पुरुष वेश वाली राजकुमारी ने राजा को बताया कि वह वैद्य है और राजकुमार की बीमारी के बारे में सुनकर उसका इलाज करने आई है। उसे एक रात के लिए राजकुमार के कमरे में अकेला छोड़ दिया जाए। 

“मरता क्या न करता! राजा ने उसे राजकुमार के कमरे में एक रात रहने की आज्ञा दे दी। कमरे में अकेली होते ही राजकुमारी ने सबसे पहले पलंग के नीचे झाँककर देखा। वहाँ उसे एक चोर-दरवाज़ा दिखाई दिया। वह उसमें घुस गई और एक सुरंग में पहुँच गई, जिसके अंत में एक दिया जल रहा था . . . ”

तभी सौदागर के नौकर ने दरवाज़ा खटखटाया और कहा कि एक बूढ़ी महिला सौदागर की बेटी से मिलना चाहती है। वह अपने को उसकी मौसी बताती है। वास्तव में यह वही बूढ़ी स्त्री थी जिसे राजा ने अपना सहायक बनाया था!! 

लेकिन सौदागर की पुत्री कहानी में आगे का हाल जानना चाहती थी, “मैं अभी किसी से नहीं मिलना चाहती! हरियल आगे का क़िस्सा कहो!” 

तो तोते ने आगे कहना शुरू किया, “. . . राजकुमारी सुरंग के आख़िर में जलती रोशनी तक जा पहुँची। वहाँ उसने देखा कि एक बुढ़िया केतली में राजकुमार का दिल उबाल रही थी। उसने अपने जलने की परवाह न करते हुए केतली में से दिल निकाल लिया और तेज़ी से बीमार राजकुमार के पास वापस पहुँच गई। वहाँ उसने वह दिल राजकुमार के मुँह में डाल दिया और बस! राजकुमार तो अच्छा हो गया! 

“राजकुमार के पिता राजा ने कहा, मैंने अपना आधा राज्य उस व्यक्ति को देने का वादा किया था, जो मेरे बेटे को अच्छा कर देगा। क्योंकि तुम एक स्त्री हो इसलिए तुम्हारी शादी मेरे बेटे से होगी और तुम रानी बनोगी . . . ”

”बहुत अच्छी कहानी सुनाई हरियल! अब मैं उस महिला से मिलूँगी जो अपने को मेरी मौसी बताती है,” सौदागर पुत्री बोली। 

“. . . अरे, अभी कहानी पूरी कहाँ हुई . . .!” तोता बोला, “अभी तो बहुत कुछ बाक़ी है, ज़रा ध्यान से सुनो, वैद्य बनी युवती ने राजकुमार से विवाह करने से भी मना कर दिया और उस नगर की ओर चल पड़ी जहाँ का राजकुमार अचानक अपनी ज़बान खोकर गूँगा हो चुका था। यहाँ पर भी राजकुमारी ने राजकुमार के साथ एक रात गुज़ारने की बात कही। उसे इजाज़त भी मिल गई। रात को वह बीमार के पलंग के नीचे छिप गई। आधी रात को उसने देखा कि खिड़की के रास्ते दो परियाँ आईं। उन्होंने राजकुमार के मुख से एक कंकर निकाला और सुबह तक राजकुमार के साथ हँसी-ठट्ठा, क़िस्से-कहानी सुनना-सुनाना करती रहीं। भोर में जाने से पहले उसके मुँह में वह कंकड़ फिर रख दिया और राजकुमार गूँगा हो गया, परियाँ वापस जैसे आई थीं, वैसे ही लौट गईं . . .” 

दरवाज़े पर फिर दस्तक हुई। लेकिन सौदागर कन्या कहानी सुनने में इतनी मग्न थी कि उसने आहट सुनी भी नहीं। तोते ने कहानी जारी रखी, “. . . अगली रात को जब परियों ने राजकुमार के मुँह से कंकर बाहर निकाला और पलंग पर रखा तो नीचे छुपी हुई राजकुमारी ने चादर खींचकर पत्थर नीचे गिरा दिया और धीरे से अपने पास खिसका कर जेब में रख लिया

“भरपूर मनोविनोद के बाद जब परियाँ भोर में वापस जाने लगीं तो उन्होंने कंकर ढूँढ़ा पर वह उन्हें नहीं मिला। इधर भोर होने वाली थी! वे खिड़की के बाहर उड़ गईं। कंकर निकल जाने के कारण राजकुमार की बोली वापस आ गई। अब इस राजा ने राजकुमारी को अपना राजवैद्य नियुक्त कर दिया . . . ”

द्वार पर खटखटाहट लगातार हो रही थी, और सौदागर की पुत्री, ’अंदर आ जाओ’ कहने वाली थी, लेकिन फिर भी उसने पहले तोते से ही पूछ लिया, “कहानी अभी आगे भी है या पूरी हो गई?” 

“. . . अभी तो बाक़ी है भई!” तोते ने कहा, “. . . बस सुनती चलो! वह युवती राजवैद्य बन कर एक जगह टिक कर नहीं रहना चाहती थी। उसे नई जगहों की तलाश थी और वह चल पड़ी। 

“अब वह जिस नगर में पहुँची वहाँ शोर था कि राजा पागल हो गया है। उसे जंगल में एक आदमक़द गुड़िया मिली थी और वह उस गुड़िया के साथ एक कमरे में बंद हो गया है। वह राजकाज छोड़कर बस रोता रहता है कि यह गुड़िया जीती-जागती युवती क्यों नहीं है? अब राजा को चंगा करने की मंशा से राजकुमारी राजा के सामने गई और राजा की गुड़िया देखते ही बोल पड़ी, ’अरे यह तो मेरी गुड़िया है!!’ और राजा भी युवती को हूबहू गुड़िया जैसी देख कर बोल उठा, “अरे यह तो मेरी दुलहन है . . . “

तभी दरवाज़े पर फिर दस्तक हुई, अब बेचारे हरियल को सूझ नहीं रहा था कि कहानी कैसे आगे बढ़ाए! फिर भी बोला, “. . . थोड़ा ठहरो, बस थोड़ी सी और बाक़ी है . . . ”

लेकिन फिर भी आगे कुछ समझ में नहीं आया कि क्या कहे . . .! 

“बेटी दरवाज़ा खोलो न! मैं व्यापार से लौट आया हूँ,” सौदागर की आवाज़ आई। 

“. . . और अब मेरी कहानी भी ख़त्म हो गई . . .” तोते ने कहा, “राजा ने युवती से शादी कर ली और वे आनंद से रहने लगे।” 

सौदागर की बेटी ने लपक कर दरवाज़ा खोल दिया और पिता ने उसे गले लगा लिया, “शाबाश, मेरी बेटी, “सौदागर बोला,” मेरा कहना मान कर तुम घर में ही रहीं, शाबाश! और तुम्हारा हरियल तोता कैसा है?” पिता पुत्री दोनों तोते के पास पहुँचे लेकिन उसके बदले वहाँ उन्हें एक सुंदर युवक देखने को मिला। 

”मुझे क्षमा करिएगा श्रीमान,” युवक बोला, “मैं एक राजा हूँ, मैंने तोते का रूप इसलिए धारण किया क्योंकि मैं आपकी बेटी से प्रेम करने लगा था। मुझे जब यहाँ के राजा की, आपकी बेटी को उठा ले जाने की मंशा का पता चला तो उसके इरादों को नाकाम करने के लिए मैं तोते के वेश में, शराफ़त से आपकी बेटी की रक्षा करने और उसका मन जीतने के लिए आपके घर में आया। मैं समझता हूंँ कि मैंने दोनों बातों में सफलता पाई है। क्या आप अपनी बेटी का हाथ मुझे देंगे?” 

सौदागर और उसकी बेटी दोनों को इस सम्बन्ध से कोई एतराज़ न था!! कहानी सुनाने वाले राजा से सौदागर की बेटी का ब्याह हो गया और दुष्ट राजा मारे दुख और जलन के अपने आप ही मर गया . . . और इसके साथ ही मेरा आज का क़िस्सा भी ख़त्म, फिर मिल कर बैठेंगे तब होगा नया क़िस्सा। 

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