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गीता और सूरज-चंदा

 

मूल कहानी: ला बेला एडोरमेंटाटा इड ई सोइ फ़िग्ली; चयन एवं पुनर्कथन: इतालो कैल्विनो
अंग्रेज़ी में अनूदित: जॉर्ज मार्टिन (स्लीपिंग ब्यूटी एंड हर चिल्ड्रेन); पुस्तक का नाम: इटालियन फ़ोकटेल्स; 
हिन्दी में अनुवाद: ‘गीता और सूरज-चंदा’ सरोजिनी पाण्डेय

 

किसी समय में किसी देश का राजा निस्संतान था, राजा के इस दुख से राजा तो क्या, प्रजा भी दुखी थी। रानी दिन रात संतान पाने के लिए ईश्वर से प्रार्थना करती रहती थी। कोई साधु संत भी उसने नहीं छोड़ा था, जहाँ जाकर संतान पाने की प्रार्थना उसने न कि हो। लेकिन भाग्य उससे रूठा हुआ था! एक दिन उसने देवी माँ के सामने बैठकर अपना दुखड़ा बिलख-बिलखकर रोया और कहा, “माँ, मुझे तो बस एक बेटी दे दो चाहे वह कुछ ही बरस तक मेरे पास रहे। मेरा बाँझ रहने का दुख तो मिट जाए।” और . . . भाग्य की बात देखो कि कुछ ही समय बाद एक कन्या को राजरानी ने जन्म दिया। उसके जन्म के साथ ही आकाशवाणी हुई कि ‘यह बिटिया पंद्रह वर्ष की होने तक तुम्हारे पास रहेगी और उसके बाद हाथ में तकुआ चुभने से इसकी मृत्यु हो जाएगी’।राजा रानी इतने से ही बहुत ख़ुश हो गए। उन्होंने बड़ा आयोजन किया और बिटिया का नाम रखा ‘गीता’। 

बेटी बड़ी होने लगी जैसे चंद्रमा की कला! जब वह पन्द्रह साल के आसपास पहुँची तो रानी को राजकुमारी के जन्म के समय की आकाशवाणी की याद आ गई! उसने राजा को यह बात बताई। राजा के तो दुख का परावार ही न रहा। उन्होंने सारे राज्य में मुनादी करवा दी कि यदि किसी के भी पास कोई तकुआ या तकली पायी गयी तो उसे मौत की सज़ा दी जाएगी! जो लोग सूत की कताई का काम करते थे, उनके पालन-पोषण की ज़िम्मेदारी भी राजा ने अपने ऊपर ले ली। इतना करने के बाद भी जब राजा को संतोष ना हुआ तो उन्होंने अपनी बेटी को ताले-चाबी में कड़ी सुरक्षा के भीतर रखवा दिया और यह घोषणा करवा दी कि राजकुमारी से कोई मिल नहीं सकता! 

अकेले कमरे में बैठी-बैठी किशोरी राजकुमारी अपना दिल बहलाने के लिए खिड़की से बाहर देखती, कभी कमरे में चहल-क़दमी करती। अब संयोग की बात कि उसकी खिड़की से एक बूढ़ी अम्मा का घर सड़क के उस पार दिखाई देता था। हम सभी जानते हैं कि वृद्धावस्था में लोग अपने में ही सिमट जाते हैं, उन्हें अपने आसपास की दुनिया की कोई परवाह नहीं रहती। यह स्त्री भी अक्सर अपने कमरे में तकली और थोड़ी सी रूई लेकर बैठ जाती और सूत कातती, उसे राजा की मुनादी की कोई ख़बर न थी। एक दिन वह खिड़की के पास धूप में बैठकर अपना तकुवा चल रही थी, सड़क की दूसरी ओर से राजकुमारी ने अपनी खिड़की से इस अम्मा को देखा, राजकुमारी गीता ने इसके पहले कभी तकली नहीं देखी थी। उसने जब बुड्ढी अम्मा के हाथों की गतिविधि देखी तो उसे बड़ी हैरानी हुई। उसके बारे में और अधिक जानने की उसकी इच्छा बड़ी बलवती हो गई। खिड़की से उसने पुकारा, “अम्मा, ओ अम्मा तुम क्या कर रही हो?” 

“मैं यह थोड़ी सी रूई, अपना दिल बहलाने के लिए, कातकर सूत बना रही हूँ। बेटी तुम यह बात किसी से मत कहना, नहीं तो मुझे राजा मरवा देंगें!”

“क्या मैं भी कातना सीख सकती हूँ?” 

“क्यों नहीं, क्यों नहीं, लेकिन वादा करो कि यह बात तुम किसी को न तो बताओगी और न तकली किसी को दिखाओगी।”

“ठीक है अम्मा, मैं एक छोटी सी टोकरी अपनी खिड़की से बाहर गली में उतारती हूँ और तुम उसमें सारी चीज़ें रख देना। टोकरी में तुम्हारे लिए एक उपहार भी तुम्हें मिलेगा!”

और राजकुमारी ने एक टोकरी में पैसों का एक बटुआ रखकर टोकरी नीचे लटका दी अम्मा ने उसमें थोड़ी सी रूई और तकुवा रख दिया। राजकुमारी ने कोठरी का दरवाज़ा अंदर से बंद कर लिया और ख़ुशी-ख़ुशी सूत कातना सीखने लगी। जब अम्मा तकली कातती थी, तब राजकुमारी उसे बड़े ध्यान से देखती थी। इसलिए उसने जल्दी ही धागा बनाना शुरू कर दिया। राजकुमारी ने पहली पूनी काती, दूसरी पूनी काती और तीसरी कातते समय तकली का तकुआ उसके दाहिने हाथ के अँगूठे के नाखून के नीचे घुस गया और वहीं टूट कर धँस गया। बेचारी राजकुमारी गिर पड़ी, उसकी साँसें बंद हो गईं। 

शाम को जब राजा ने अपनी बेटी के दरवाज़े को खोलना चाहा तो वह नहीं खुला। उसने दरवाज़े पर दस्तक दी तो उसे कोई जवाब न मिला। आख़िरकार वे लोग दरवाज़ा तोड़ कर जब भीतर आए तो वहाँ का दृश्य देखकर दुख में डूब गए। रानी की तो मानों दुनिया ही उजड़ गई। बेचारी लड़की जो चाँद जैसी सुंदर थी ऐसा लग रहा था किसी श्राप के कारण आँखें बंद करके पड़ी है, जिसका न तो दिल धड़कता है, न साँसें चलती हैं। राजा रानी अपनी बेटी की ऐसी दशा से मानो पत्थर बने खड़े रहे। उन्हें उम्मीद थी कि न जाने कब उनकी बेटी आँखें खोल दे। शायद अब उनकी बेटी का दिल धड़कने लगे। उन लोगों को उसके मरने का विश्वास ही नहीं हो रहा था। यहाँ तक कि बहुत दिनों तक उन्होंने उसका कोई अंतिम संस्कार भी नहीं किया। पहाड़ के ऊपर राजा ने एक छोटा-सा महल बनवाया, जिसमें कोई दरवाज़ा नहीं, बस एक खिड़की ज़मीन से बहुत ऊँचाई पर बनवा दी। उसके अंदर अपनी बेटी का शरीर सुंदर पलंग पर रेशमी बिस्तर लगवाकर, छत पर चँदोवा तनवा कर, लगवाया। बेटी के लिए उन्होंने दुलहन के जैसा सात गज का, सात परत का लहँगा सिलवाया जिसके घेर की हर परत में चाँदी की घंटियाँ लगी हुई थीं। सजा सँवरा कर, दुलहन जैसा बनाकर आख़िरी बार बेटी को चूम उन्होंने उसे महल के उस सुंदर पलंग पर लिटा दिया। 

जब राजा रानी चले गए तब वह दरवाज़ा भी बंद करवा दिया गया। 

इस घटना को बहुत दिन बीत गए। 

एक दिन अचानक उधर से एक नौजवान राजकुमार गुज़रा जो कि अपनी माँ की मृत्यु के बाद अनाथ हो गया था और अपनी सौतेली माँ के व्यवहार के कारण दुखी रहता था। संयोग कुछ ऐसा हुआ कि वह इस राजकुमारी के महल के पास जा निकला। ‘आख़िर यहाँ इस वीराने में यह कैसी इमारत है?’ उसने सोचा और वह सीधा वहाँ पहुँच गया। उसे हैरानी तब हुई जब उसे महल में कोई दरवाज़ा भी नहीं दिखा। उसके शिकारी कुत्ते महल के चारों ओर चक्कर लगाने लगे और इधर राजकुमार अपनी जिज्ञासा को नहीं रोक पा रहा था। उस दिन तो राजकुमार चला गया अगले दिन वह एक रस्सी की सीढ़ी लेकर लौटा। उस सीढ़ी को खिड़की तक फेंक कर वह महल में घुस गया। महल के भीतर जो उसने देखा उसे तो उसकी हैरानी और बढ़ गई। एक सुंदर, बड़े, चँदोवा तने पलंग पर, रेशमी चादर के बीच दुलहन के वेश में एक सुंदर राजकुमारी सो रही थी। राजकुमार को तो मानो चक्कर ही आ गया। मुश्किल से अपने को सँभाला और धीरे से पलंग पर बैठ गया। अब उसने बड़े हौले से राजकुमारी का माथा छुआ जो कि गर्म था! ‘तो यह मरी नहीं है’ उसने सोचा उसकी आँखें राजकुमारी के चेहरे से हट ही नहीं रही थीं। रात तक वह वहीं रहा कि शायद राजकुमारी जाग जाए लेकिन उसे न तो जागना था न वह जागी! राजकुमार अगले दिन फिर वहाँ आया और फिर अगले दिन और फिर अगले दिन आता रहा। वह बार-बार राजकुमारी को चूमता और बस निहारता रहता। जब तक वह महल में रहता तब तक उसकी आँखें राजकुमारी के चेहरे से दूर नहीं होती थीं। थोड़े ही दिनों में वह दिलोजान से उसे चाहने लगा। उधर सौतेली माँ परेशान थी कि आख़िर ऐसा क्या है जो उसके बेटे को सारा-सारा दिन ग़ायब किये रहता है। 

युवा राजकुमार का प्रेम इतना गहरा था कि उस प्रेम से सोई हुई युवती राजकुमारी ने जुड़वा बच्चों को जन्म दे दिया, एक लड़का और लड़की! जन्म के समय शिशु भूखे थे। लेकिन उनकी भूख मिटाने वाली माँ तो सोई पड़ी थी! नन्हे-नन्हे नवजात शिशु अपना नन्हा मुँह खोलकर चूसने के लिए इधर-उधर कुछ ढूँढ़ने लगे। ऐसा करते हुए बालक शिशु के मुँह में सोई हुई राजकुमारी का वह अँगूठा आ गया जिसमें तकुआ चुभकर टूट गया था। माँ का स्तन समझकर वह शिशु उस अँगूठे को ही चूसने लगा। दूध तो मिल नहीं रहा था लेकिन शिशु ज़ोर से चूस-चूस कर इस प्रयत्न में लगा था कि उसका पेट भर जाए। इस कोशिश में तकुए की नोक राजकुमारी के अँगूठे से बाहर आ गई। और। तब वह मानो नींद से जाग गई। 

आँखें मलते हुए, “ओ माँ, मैं कितना तो सोती रह गई!” कहते हुए हुए राजकुमारी जागी, “लेकिन मैं आख़िर हूँ कहाँ? किसी क़ैद में? और यह दो नन्हे बच्चे? यह किसके हैं?” वह अभी और हैरान, परेशान होती कि तभी खिड़की से कूदकर राजकुमार भीतर आया। 

“तुम कौन हो? और क्या चाहते हो?” 

“तुम सचमुच ज़िन्दा हो? बोलो, बोलो, मेरी प्यारी रानी! मुझ से कुछ बोलती रहो!!!”

जब दोनों कुछ स्थिर हुए तब बातचीत आरंभ हुई दोनों ने एक दूसरे के परिवार के बारे में जाना-समझा और फिर एक दूसरे को पति-पत्नी के रूप में स्वीकार कर वे आनंद मानने लगे। बच्चों का नाम दोनों ने मिलकर चंदा और सूरज रखा। 

फिर राजकुमार यह वादा करके कि वह जल्दी ही लौटेगा और बच्चों को और राजकुमारी को अपने घर ले जाएगा अपने राज्य में लौट आया। 
यह राजकुमारी तो सचमुच ही अभागी थी, अपने राज्य में लौटने के बाद राजकुमार बीमार पड़ गया। उसका खाना-पीना सब बंद हो गया। वह लगभग बेहोशी की हालत में केवल यही कहता रहता: 

“मेरी चंदा, मेरे सूरज, मेरी प्यारी गीता
काश मुझे ज़िन्दगी भर तुम्हारा साथ मिलता!”

यह सुन-सुनकर सौतेली माँ को लगा कि उसके बेटे पर किसी भूत-प्रेत का साया है। उसने नौकरों को भेज कर जंगल में तलाश करवानी शुरू की कि राजकुमार आख़िर जाता कहाँ-कहाँ था? जब उसे यह पता लगा कि जंगल के एक वीरान से महल में वह जाता था और वहाँ एक लड़की के प्रेम में पागल हो गया, जिससे उसकी दो संतानें भी हैं, तो वह बौखला उठी, आख़िर को वह थी तो सौतेली माँ ही! 

उसने अपने कुछ सैनिक भेजे और राजकुमारी को आज्ञा दी कि वह राजकुमार के बेटे को उनके साथ भेज दे। राजकुमार बीमार था और अपने बेटे को अपने पास देखना चाहता है।

गीता के पास कोई चारा न था, किसी तरह रोते-कलपते उसने अपने बेटे को सिपाहियों के साथ राजकुमार से मिलने के लिए भेज दिया। सिपाही महल में वापस आए और उन्होंने बच्चे सूरज को, राजकुमार की सौतेली माँ, रानी के हवाले कर दिया। रानी सूरज को लेकर रसोई में पहुँची और रसोइए को आदेश दिया कि ‘इसे भूनकर राजकुमार के सामने लाओ’ लेकिन रसोइया दयावान था। वह अपने बच्चों का पिता भी था, नन्ही जान को मार ना सका। उसने बच्चा अपनी पत्नी को दे दिया और कहा कि इसे सबसे छुपा कर अपने पास रखो और दूध पिलाओ। उसने एक मेमने को भूना और बीमार राजकुमार के लिए भेज दिया। भुना मांस देखकर फिर राजकुमार विलाप करने लगा:

“मेरी चंदा, मेरे सूरज, मेरी प्यारी गीता
तुम सब साथ होते तो कितना अच्छा होता!”

निर्दय रानी ने भोजन की थाली अपने सौतेले बेटे की ओर बढ़ाते हुए कहा, “प्यारे बेटे, लो खाओ, यह तुम्हारा अपना ही है।”

राजकुमार ने अपनी माँ की ओर देखा लेकिन उसकी समझ में कुछ ना आया कि आख़िर वह कह क्या रही है! 
अगली सुबह उस क्रूर रानी ने फिर सिपाहियों को उसी महल को भेजा और बेटी चंदा को भी बुला लिया। इस बार भी रसोइये से उसका मांस पकाने को कहा लेकिन रसोइए ने उसे भी अपनी घरवाली को दे दिया और वह दोनों बच्चों को अपनी गोद में लेकर उनकी देखभाल करने लगी। एक दूसरा मेमना राजकुमार के लिए पका दिया गया। आज भी खाना देते समय सौतेली माँ ने वही बात कही, “खाओ, खाओ अपनों पर दावत उड़ाओ!”

राजकुमार ने धीमे स्वर में पूछा, “आप क्या कह रही हैं माँ?” लेकिन रानी ने उसे कोई जवाब नहीं दिया! 

तीसरे दिन रानी ने सिपाहियों को भेज कर गीता को भी बुलवाया। जब गीता महल में पहुँची तो रानी सीढ़ियों पर ही उसका इंतज़ार कर रही थी। जैसे ही लड़की रानी के पास पहुँची, उसने लड़की को पीटना शुरू कर दिया बेचारी गीता ने पूछा, “आप मुझे मार क्यों रही हैं?” '

“क्यों न मारूँ? तुमने ही तो मेरे बेटे पर जादू किया है, वह इतना बीमार हो गया है कि बचेगा नहीं। चुड़ैल, तुम ज़िन्दा रहने लायक़ नहीं हो, अब मैं तुम्हें ज़िन्दा नहीं छोड़ूँगी, ज़रा उस तरफ़ देखो।”

गीता ने जब उधर देखा तो उसे उबलता हुआ कोलतार दिखाई दिया। 

जब यह सब बातचीत हो रही थी, तब राजकुमार को कुछ भी सुनाई नहीं दिया क्योंकि वहाँ पर बीमार राजकुमार का मन बहलाने के लिए संगीतकार गाना बजाना कर रहे थे। 

गीता के डर का क्या कहना, वह बेचारी कहीं भाग तो सकती नहीं थी, सामने एक ड्रम में कोलतार पिघल रहा था, वह डर से ही अधमरी हो गई थी। तभी रानी की कड़कती आवाज़ सुनाई दी, “मरने के लिए तैयार हो जाओ! सबसे पहले तुम अपना यह लहँगा उतारना शुरू करो और उसके बाद मैं तुम्हें कोलतार में फिंकवाऊँगी।” काँपते हुए गीता ने लहँगा उतारना शुरू किया। जब उसने लहँगे की पहली परत खोली तो चाँदी की घंटियाँ बजने लगीं। राजकुमार को इन घटियों की रुनझुन सुनाई दी जो उसे जानी-पहचानी लगी। उसने अपनी आँखें खोलीं, इसी बीच ढोल बजने लगा राजकुमार को लगा कि उसने कुछ ग़लत ही सुन लिया, शायद उसके कान बज रहे हैं। 

उधर गीता ने लहँगे की दूसरी परत उतारी और घंटियाँ थोड़ा ज़ोर से बजीं। राजकुमार ने अपना सिर उठाया और ध्यान से सुनने की कोशिश की, उसे विश्वास हो गया कि यह गीता के लहँगे में लगी घंटियों की ही आवाज़ है! . . . लेकिन तभी बजनिये मँजीरा बजाने लगे और राजकुमार फिर कुछ न सुन सका। 

अब राजकुमार ने अपना सारा ध्यान अपने कानों पर लगाया गीता एक के बाद एक लहँगे की परतें खोल-खोल कर हटा रही थी—घंटियाँ छोटी से और बड़ी होती जा रहीं थीं—आवाज़ तेज़ और तेज़ होती जा रही थी। अंत में उसके सात गज के, सात परत के घाघरे से इतनी घंटियाँ बजने लगीं कि सारे महल में उनकी आवाज़ गूँजने लगी!! 

“गीता, मेरी गीता, गीता!” कहता हुआ राजकुमार अपने पलंग से नीचे कूद पड़ा, काँपते हुए बीमार क़दमों से वह बाहर निकाला और सीढ़ियों से उतरकर उसने देखा कि उसकी प्रियतमा बस उबलते कोलतार में फेंकी जाने वाली ही है। 

“बंद करो यह सब!!” वह चिल्लाया। 

अपनी सौतेली माँ के सामने वह नंगी तलवार लेकर खड़ा हो गया, “यह तुम क्या करने जा रही थीं? क्या-क्या पाप किए हैं तुमने?” 

जब उसे बताया गया कि उसके बच्चों का मांस ही उसके लिए परोसा गया था तो वह रसोइए को क़त्ल करने के लिए रसोई की तरफ़ दौड़ा। लेकिन रसोइए ने उसे बताया कि बच्चे सुरक्षित हैं। यह सुनकर राजकुमार की ख़ुशी का तो ठिकाना ही ना रहा। वह इतना ख़ुश हुआ कि पागलों की तरह नाचने लगा। अब राजकुमार ने अपनी सौतेली माँ को ही उस पिघले गर्म कोलतार में फिंकवा दिया। 

रसोइए को मालामाल कर दिया और चंदा, सूरज और गीता के साथ महल में आनंद से रहने लगा। 

“तुम भी कहो कहानी, 
 छोटी हो या लंबी
मुझे तुम्हारी सुननी है, 
तुमने तो मेरी सुन ली!”

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